________________
६६४
रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
चरम सागरिया ॥ मे० ॥ चरण कमल सेवित अतिरसिया । हरिगण अमर नमरिया || मे० २ ॥ अलख निरंजन अगम अगोचर । तूं प्रभु •जगदीसरिया ॥ ० ॥ शरण शरण चरण निपतित नवि । जनगण तारण तरिया ॥ मे० ॥ ३ ॥ लोकालोक कमलवन विकसित । तुम प्रजुवासर क रिया || मे० ॥ तुम महाराज सकल जगऊनको । तुम दरसण हग ठरिया ॥ मे० ४ ॥ मंगलकैरव कानन विकसन । प्रभु शिवचंद्र निकरिया || मे० ॥ जे विमुख जिन तवन नच्चरिया । तेजिन कमलावरिया || मे० ५ ॥ इणविध श्रावक करियै जिननुति । अनुजवरस गुणनरिया ॥ मे० ॥ जिनतुति कारक जविजनकुं नित । प्रणमत जुवन विसरिया || मे०६ ॥ काव्यं ॥ बि बुध संस्कृत सन्नुति राजितं । सकल सजण संग विनासितं । जिनगणस्य सदा स्तवनं मुदा । सुखकरं सुतराविदधेतरां ॥ ७ ॥ इति जिनगुणस्तुति ॥ २० ॥ ॥ # ॥ अथ कोशवृद्धिपूजा ॥ ॥
॥ ॥ ( दूहा ) कोशवृद्धि इकवीसमी । जिनपूजा मनुहार । करो जविक तिसें जरो । विमल पुण्य जंकार १ ॥ सब अरति मथनमु० ॥ चाल ॥ रजतमणि कलधौत वरतर रयण द्रव्य नदाररे । अखिल हरिगए लेइ बहुतर जरय जिननंमाररे ॥ रज० १ ॥ जेह सुमती उचित बहु धन । नरै कोश अपा ररे । तेह निज जीनकोश माहें । जरय ज्ञान नदाररे ॥ २० २ ॥ जे अधरमी मंद कुमती । हरै पूजनसाररे । तेहि निज चेतन सदनकुं । करे व्यसनागाररे २० ३ ॥ निसुनिवि शिवचंद्र जंपै । पूज एह विसालरे । करो तुम ति नित्य aहिस्यौ । अमल मंगल मालरे ॥ २०४ ॥ काव्यं ॥ अमल कोश वि वृद्वसु पूजना | चिंतमनंत सुखबज संगतं । यतिनतं त्रिजगऊन सम्मतं । निहत दुर्मत माप्त महंयजे ॥ १ ॥ नँ की श्री प्रति अनंतानंत ज्ञानशक्तिभ्यः सकल सुरवरेंद्रवृंद विहित भक्तिभ्योजन्मजरामरण निवारणकारणेभ्यः कुमति मततरुगण काननसमूलोन्मूलनवारणेभ्यो ऐहि लौकिक श्रीरुषनादिश्रीव मानपर्य्यतेभ्यःश्चतुर्विंशति जिनेंद्रेभ्यः कोश वृद्ध्यर्थं दिव्य द्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ * ॥ इति कोश वृद्धि पूजा ॥ २१ ॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥