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इकवीस प्रकारीपूजा. नि०॥१॥अरधचंद्रसम नालबिराजत॥शरदचंद्रमुख अम्रित ऊरीया। ॥ नि ॥ अति विशाल सारंग विलोचन ॥ निरषित सहु सुर जनमन हरीया ॥ नि०॥२॥ सकललोक जनमन जीतणकुं ॥ मदनि सेन मनु प्रकटन करीया॥नि०॥ तब सुरवनितासुरसमलोहित । जलदघटा ममि जैसी विजुरीया ॥ नि०३॥ आणण आणण रणकित नेगरीया॥ उमिकर पाय वजित घुघरीया ॥ नि०॥ तत्ताथेई तत्ताथेई चलतचरण गति ॥ त ननन री री गान नचरीया ॥ नि०॥४॥ताल कंसाल वेणु वीणादिक ॥ विविध तूर धुनि गयण पसरीया। नि। द्रागमिदिकी २ धपमप धौधौं । वाजित मुरज मधुरीया॥ नि० ५॥ विविध तूर धुनि करत बधरीया॥ नुन्नव अमृत धार नगरीया॥ नि०॥ नटनकरंती अमर कुमरीया । जिन गुण गावत मधुर सुसुरीया। नि०६॥ समीय सोल सिणगारसुंदरीया॥ सकलदेव पुति घर सुर तिरीया ॥ नि०॥ परम रूप लवणिमकी दरीया । मनुयवासकिय कामकेसरीया॥नि० ७॥चिरंजीव चिरनंद जिणेसर॥नवजल तारण तरण मुतरीयानि०॥चिदानंदघन सुख प्रागरीया॥वारीजानंजिनजी नींसूरति उपरीया ॥ नि० ८॥जय जगबांधव जय जगवडल। जयर जिन महाराज शंकरीया ॥ नि०॥जेपनु समरण तरणि पकरीया। तेह चरम सा गर नवतरीया ॥ नि० ९॥ सूरीयान दशकंधरनीपरि । जेह नटन जिनपति पुरकरीया। नि। ते शिवचंद्र अमल जिनपद युत । अम्रित कमला लिंग नधरीया॥ नि० १०॥ काव्यं ॥ लववनाटन नाटन नाशकं । कुशल पद्मदि नेश विकाशकं । कुमतिशंचटनं नटनं मुदा । न्वहमहं विदधे पुरतोऽर्हतां ॥ ११ ॥ इति नगणीसमीनाटकपूजा ॥ १९ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ * ॥अथ जिनगुणस्तुति ॥ * ॥ ..(दूहा ) जिनगुणनुति पूजन सदा । करोसुमति गुणधार । इणपूजन कातणो । करै स्तवन दनुजार ॥१॥ विचखरे मधुवनके वावरे। में कैसे जरनजाउं पानीरा ॥ एचाल॥ मेरीलगीय लगन जिनराजचरणमैं ॥ में अब तरीया नवदरिया ॥ मे० ॥ तुम प्रनु जीतलीये सुरगिरिया । धीरज गुण सुखकरिया ॥ मे० १ ॥ जीतो अतिह गंभीर गुणें करि । परम