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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. जावथी। पापी पिण पावन थायए ॥३॥ हांहोरेदेवा। श्रावक सुध समकित धरै ते विधपूर्वक धर प्रेमए ॥ हांहोरेदेवा ॥ बालकहै जिनचंद्रनी। करै नक्ति सदा निङखेमए । हांहो० ॥ ४॥ इति । १ । ढाल दूजी। पूर्वमुषसावनंकरिदर्श नपावनं । एचाल ॥अडित डिनचंद्र सुरवृंद सेवित सदा॥ मुनग पत्कज तणी सेवना। हारअईयोसेवनाए । जगत पुर्खनमणी रत्नपर जीवकुं। पूजीय चरण जिन देवनाए ॥ हारे ॥१॥ तरण तारण नवोदधि नविकजीव केई॥ परम नपगार कर निस्तरया । हारे। शिखरगिर राय पर पाय निर्वाणपद ॥ सिघ निजरूप गुण संजरया ॥ हरिप्र० ॥२॥अष्टविध पूजना द्रव्य जावै करे। जाव मन सौच धर जेनरा ॥ हारेअ०॥तेशिखरतीर्थ शिवसौख्य संपदवरै। बाल जिननक्तवत्सलकरा । हारअईयो वत्सल०॥३॥ इति । नक्षी श्रीपर मात्मनेअनंतानंत ग्यानशक्तए जन्मजरा मृत्युनिवारणाय श्रीअडितजिनें द्राय अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहाः ॥॥
॥॥अथ द्वितीयपूजा॥ ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ ॥ श्रीसंभव नवदव अनल । जलधर सम जिनराज। परनपगारी परमगुरु । नए नविक सुखकाज ॥१॥रागवेलानल ॥ विलेपन कीजै श्री जिनवर अंगै॥ ए देशी॥ पूजियैजिन मनरंगै जिनेसर॥पूजि०॥ जल कुंकुमादत धूप दीप करी । नेवजफल मनचंगै॥ जिने० १॥ सेना मात जितारी तात सुत । श्रीसंनव जिन अंगै । हार मुगट कुंमल वर नूषण । चाढो नवि सुन्नटंगै ॥ जि० पू०॥२॥ शिखर शिखर पर शिखरजएहै अनंतचतुष्क मुरंग । बालचंद्र प्रनु अधम नधारन । प्रनुता परम प्रसंग जिनेसर पूजिय० ॥ ३ ॥ नझी श्री परमात्मने संनवजिनेंद्रायअष्टद्रव्यं यजामहेस्वाहाः। इति द्वितीयपूजा ॥२॥॥
॥ ॥ ... ॥॥अथ तृतीयपूजा॥॥ ॥ ॥ दूहा ॥ ॥ अनिनंदन जिनचंदकी। महिमा वरणी न जाय। परमरूप परमातमा । सदानंद सुखदाय ॥१॥रागसारंग ॥ सांऊसमें जिन बंदो नवि० ॥ए चालमें ॥ अभिनंदनजिनवंदो । नविजन । अनि । आंकणी ॥ संवरतात सिघारथमाता । जाके कुलनन चंदो ॥ ज० अ० ॥१॥