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श्रीसमेत शिखरजीकी पूजा. ६६७ अधम नधारन नवदुःख वारन । सिव सुरतरुनो कंदो। इंद्र चंद्र असुरेंद्र नमैं नित । वदित सुर नर वृंदो ॥ ज० अ०॥२॥ समेतशिखर पर सिवसुख पायो। मिटगयो नवनय फंदो। वालचंद्र प्रनु तरण तारणको । पूजनकरी चिरनंदो॥जवि० अ०॥३॥इति । नक्षी श्री परमात्मने श्री अनिनं दन जिनेन्द्राय अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहाः॥३॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥अथ चतुर्थीसुमतिजिनपूजा ॥2॥ ॥ ॥ दूहा ॥ ॥ सुमतिनाथ समसंपदा । सदा सुमति दातार । सेवे सुर नर अमरसहु । चरन सरन चितधार ॥२॥ रागसारंग ॥ चरणकी चरणकी चरणकी। वारीजानं मैं० ॥ ए चाल ॥ बलिजालं मैं सुमति जिनंदकी ॥ २०॥ आंकणी ॥ पूरनब्रह्म नए परमातम । मेघकुलांबर चंदकी ॥ बलि० ॥ १ ॥ लविकुल कमल बिकास करनकुं । प्रगट प्रताप दिणंदकी । सवि गुणलायक वंचित दायक । शासन सुरतरुकंद की॥२॥ वलिकरन मुसेवा खचर अमरनर । मात सुमंगला नंदकी । बाल चंद्र प्रन्नु पतित नधारन । सबगुन रतन समंदकी॥वलि० ॥३॥ नक्षी श्री परमात्मने श्रीसुमतिजिनेंद्राय अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहाः॥४॥ ॥
.. ॥॥अथ पंचमी पूजा॥॥ ॥8॥ (दूहा)॥ पदम प्रनूपद पद्मकी । सरनगही सुखदाय । दर्शन विन अनदेवको । संग कबून सुहाय ॥ १ ॥राग सोरठ मल्हार ॥अणियारे नैन जिनके । सखि मुनि संग बालक किनके ॥ एचाल ॥ प्रनुसेती प्रीत लागी। मेरी नाग्यादसा अब जागीरे॥ प्रनु० आंकणी ॥ पद्मप्रनुजीकै दर सण अंतर। आगल अब मेरी जागीरे ॥ प्रनु० १॥ प्रनु परमातम में बहिरा तम । अनुन्नव आतम सागी । प्रगट प्रताप प्रनू प्रतालख । अब में जयौ अनुरागी॥प्रनु० २॥अंतरगतकी वैहीज बूझै । क्या बूझै जो दागी। बाल चंद्र निज नाथ निहारत । कुमति कुटलता त्यागीरे॥प्रनु० ३॥ इति नक्षी श्रीपरमात्मने श्रीपद्मप्रजिन अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहाः ॥५॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ षष्टी सुपार्श्वजिन पूजा॥8॥ ॥*॥ (दूहा)॥ लोहधातु सम आतमा। परमातम चिद्रूप । कंचनरूप करै