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६६८ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. प्रगट । श्रीसुपास जिन नूप॥१॥श्रीसुपास जग जीवके। पारससम जिनराज । अण घड आतम लोहकुं । कंचन करै मुकाज ॥२ राग वसंत ॥ दादा कुसल मुरिंद तुम दरसण” परमानंद ॥ दादा०॥ ए चाल ॥ नवि पूजो सु पास । सहुनी बंबित पूरै आस ॥ नवि० । जाको कमल सम सुगंध सास । आहार नीहार अदृस्य जास ॥ नवि० ॥१॥ न घटै न वधै नख केस पास । मांसासृग उज्वल वर्णतास ॥ नवि० ॥अतिसय चौतीस तणौ प्रकास । तरण तारण जंग जस सुवास ॥ नवि० ॥२॥ श्री समेतशिखर पर कर निवास । प्रनु पायो मुक्तिमाहिलसुवास ॥ नवि०॥प्रजुके समरणसें कर्मनास। कहै बाल सदा मैं प्रजुकोदास ॥वि० ॥३॥ इति ।नक्षी श्री परमात्मने० श्रीसुपार्श्वजिन अष्टद्रव्यंयजामहे स्वाहाः॥६॥॥
॥ ॥ अथ सातमीपूजा ॥ ॥ ॥॥ चंद्रा प्रनुकी चंद्रसम । मुखसोना मनुहार ॥देखत दृगआनंदलहै। सूरत अति सुखकार। मल्लि मनोहर तुम ठकुराईए राग॥ श्री चंद्रा प्रनु अरज सुणीजै। श्री चंद्रा यांकत्रिनुवन नाथ गरीबके ऊपर।दीनदयाल निवाज सकीजै ॥ श्रीचंद्रा० १ । अधम नधारन विरुदतुमारो । मोसो अधम न न कहीजै ॥ श्री०॥ इह संसार अपार अगाधमै । साहिब सरणागत रषलीजै॥ श्रीचं० ॥२॥ मोपतितनकुं पार तारो॥ निज निर्यामक विरुद वहीजै॥ श्री० ॥ बालचंद प्रनुशिव सुख दायक।आतम संपद अवमोहिदीज।।श्रीचं॥ ॥३॥नजी श्री परमात्मने अनंतानंत ग्यांन॰ जन्म० श्रीम० श्रीचंद्रा प्रनू अष्ट द्रव्यं यजा महेस्वाहा ॥७॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ अथ अष्टमी पूजा ॥ ॥ (दूहा)सुबिध जिनंद दिनंदसमा जग जीवन हितकार। मिथ्या मोह अग्यानतम । दूर हरन दिनकार ॥१॥राग ॥ जियाचतुर मुजाण नवपदके गुणगायरे ॥ एहनी॥नेटो नविक सुजाण सुबिध जिणंद सुननावरे ॥॥ नत्तम कुल नरजवतें पायो ॥ फिर असो नही दावरे ॥ १॥जक्तजधा रन जवि निस्तारन । नवसागरकी नावरे ॥ ॥ तन मन बसकर निज आतमकों ! प्रलु समरण लय लावरे॥ने०२॥ द्रव्य जाव युत पूजन करिये।