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रत्नसागर.
ग जागती जी। पुनियामें परतिख देव ॥१॥ हुँ तो मोहि रह्यो जी मां रा राज । दादरे दरवार (हुं० ) केशर अंबर केवमो जी । कस्तूरी करपूर । चंपो चंदन राय चंबली । क्ति करूं नरपूर (हुं० ) ॥२॥ पांगुलियां ने पाव समापै। आंधलीयांने आंख । रूपहीणानें रूप देवै दादो। पंख ही णाने पांख (९०) ॥ ३ ॥ चंदपाटोधर साहिबो जी । श्री जिनकुशल सूरिंद । आठ पोहर थाने लगै जी । रंग घणे राजिंद (हुं० )॥४॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ .. . ॥ ॥ सदगुरु जी सुणो मोरी अरजी (स०) पहिली काम कीये बहु तेरे। अपणा विरुद विचारी । पल पल चूक परी सदगुरु जी। में मुत लबका गरजी॥ (स० )॥१॥ध्यांन तुमारो कबहु न ध्यायो । पूजा क री नही तेरी । तोई सेवकना बंजित पूरया। ही थांरी मरजी॥(स०)॥२॥ निश्चै सेती तुम गुण गावै । तुरत कटत मुख वेमी । नक्त नधार कहावत जगमें । ताहै करत हुं अरजी (स० )॥३॥और देव कुं में नहीं ध्यान शरण ग्रहीमें तेरी । दूर थकी में नेटण आयो। विपत दिशा सब तरजी॥ (स.)॥ ४॥ कुशल गुरूका में हूं सेवक । लोक जांणें सब कोई। तमा रतनकी वीनती सुणकै । दरशण दीयो सदगुरु जी ॥ (स० )॥५॥इति
॥॥होरीकी चालमें ॥४॥ ॥ ॥ होरी खेलो नेमसैं धाय २ ( इस चालमें)॥ ॥ ॥ सदगुरुके चरण चित लाय लाय । जिनदत्त सूरिंद गुरु करोरे सहाय । ( सद०) बावन वीर अनैं बलि चौसठ । जोगणि वसकीनी हर्ष लाय । विद्या पुस्तक सोवन अदर । थांजो वज्र विदार पाय (सद०)। ॥१॥ मुलतांनमें पंच पीर महाबल । पंच नदी सादी चित्तलाय । इत्या दिक बहु परचा पूरक । गुरु समरयां सब उक्ख जाय (सद०) ॥२॥ गुरुके नामसें अमसिधि नव निधि । गुरु गुण गावो सबही धाय । श्रीजिन शोनाग्य सूरि सुगुरु पर । महिर करो गुरु सुःख दाय (सद)॥३॥