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श्री दादाजी स्तवनसंग्रह. ८०९ रीय खुशी ॥५॥ जिन कुशल सूरीसर जगचावो । अपणायतकर वेगा
आवो। अगला विरुद्ध ते अजुवालो। परघल निज गेरू प्रतिपालो॥६॥ गुणगाम गमालै एगायो। सुणतां सदगुरु वेगो आयो । राजी हुय सग ला रंगरली। जिनचंद्रनी आस्या सफल फली॥७॥इति पदं॥ ॥
॥॥ ताल तुमरी॥॥ ॥ ॥ सदा सहाई कुशलसुरिंद गुरु द्यो दौलत गुरु रायजी (सदा०) • खाई न खुटै खरची न तूटे। दिन २ वधै सवाय जी (स०)॥१॥ स कजा सुत नर सुंदर नारी । सुन्न परिकर सुख दायजी (स०) मित्र स मागम सुजशवधारण । नित प्रति हरख बाहजी (स०) ॥२॥राजा प. रजा पायनमें सहू । गुरु समरण सुपसाय जी (स०) दोखी उशमण नृप जय पमियां । सदगुरु करय सहाय जी (स.)॥३॥ विषमी विरियां सं कट पडियां। समरयां आवै धायजी (स० ) नूखां नोजन तिशियां पाणी। निरवनियां धनदाय जी (स०) ॥ ४ ॥ संघ सकलने द्यो सुख शाता। जिम कीरत जग थाय जी (स.)। थानक थिरता पर घल जोजन । पग पग कुशल सहाय जी (स.) ॥ ५ ॥ अन्नय महा सुखदाई सद गुरु । नवनिधि वंचित थाय जी (स.) । सुमति सवाई नितघर संपद। दान विशाल लहायजी ( स० )॥६॥ इति०॥ ॥ ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ . ॥ ॥ जिन कुशल सुरिंद गुरु सदा नमो (जि.)॥ सुख संपति रि घि सिधि सब हाजर । देश देशांतर कई नमो॥ जि० ॥१॥ वाट घाट अरु विषमी विरयां । विघन वुराई दूर गमो (जि०)॥२॥ अह निशि नां म मंत्र नरधारो। सुगुरुचरण चित रमो रमो (जि.)॥३॥ इक मन ध्या वो वंचित पावो । विपत व्यथा सब दमो दमो (जि.)॥४॥ अन्नय महा सुख संपति पावो । सुथिर थानक थिति जमो जमो। (जि०॥५॥ इति
॥ ॥ पुनः॥ ॥ - उत्रपती थारै पायनमें जी सुर नर सारे सेव । ज्योति थांरीज
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