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रत्नसागर. ॥१ प्रथम आचार्यपदधारक ॥२ नपाध्यायपदधारक -
पदृश्रेणीमहाराजनामः॥प्रवरपुज्यश्रेणीनामः॥ ॥६६॥श्रीजिन सुक्ख सूरिः ॥६६॥पुज्य श्रीनदयतिलकजी गणिः ॥६७॥श्रीजिन नक्तिसूरिः ॥६७॥ पुज्य श्रीअमरशीजी गणिः ॥६८॥ श्रीजिन लानसूरिः ॥६८॥पुज्य श्रीलक्ष्मीचंदजी गणिः ॥६९॥ श्रीजिन चंद्रसूरिः ॥६९॥ पुज्य श्रीविजमालजी गणिः ॥७० ॥ श्रीजिन हर्खसूरिः ॥७०॥पुज्य श्रीसुगुणप्रमोदजी गणिः ॥७१॥श्रीजिन शौलाग्यसूरिः ॥७१॥ पुज्य श्रीविद्याविशालजीगणिः ॥७२॥ श्रीजिन हंशसूरिः ॥७२॥ पुज्य महोपाध्याय श्रीलक्ष्मी ॥७३॥श्रीजिनचंद्रसूरजीपट्टे .. प्रधानजी गणिः ॥७४॥श्रीजिन कीर्तिसूरिजी वर्तमान पुज्यादेशेन ॥ ॥ वर्तमान विजय राज्ये ॥१॥ ॥॥॥ तशिष्य मुख्य ॥ ॥
॥ॐ ॥ जैन पाठक श्रीमोहनलाल (अपरनाम ) नपाध्याय श्रीमुक्ति कमलगणीने (अपना शिष्यगण) पं०श्रीजयचंद मुनिः पं० रावतमल्लादि तत्वदीपक मोहन मंमली (तथा) सर्व जैन पाठकगण हितार्थ, श्रीवीकानेर रांघमीका माणक चौकमध्य सतरमा श्रीकुंथुनाथस्वामीका अनुपम नवीन मंदिर सं० १९३१ में वनायके प्रतिष्टा कराइ (तथा) नवीन झानचैत्य जैन लक्ष्मी मोहन शाला नामक वनवायके अपना पूर्वजोंका संचित, सर्व पुस्तक सर्व ज्ञानोपगरणका, जंडार स्थापन किया ॥ फेर झान भंडारकी वृधी के • निमित्त कलकत्ता बंबई में शाखारूप जैन पाठशाला स्थापन करके, रत्नसा
गर दोनाग प्रादि सर्वधर्मकृत्य जैन आचार संग्रहका पुस्तक हजारों उपवाय के प्रशिघ किया ॥ श्रीसशुरूप्रसादात् ॥॥
॥जब लग मेरु अडिग्ग है । जब लग शशि अरसूर। तब लग यहपुस्तक सदा । रह जो गुणनर पूर ॥ * ॥ पोथीप्यारी प्राणथी। गलहियाको हार । वहुत यतनकर राख ज्यो । पोथी सेती प्यार ॥ ऐसी मेरी आशा सफल करजो सही ॥२॥ ॥ ॥॥