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नवपद व्लीकरण बिधि.
३२३ आयके पांच शकस्तवे देव वांदे। पीछे नव चैत्ये । (अथवा) नव प्रतिमा आगे। नव चैत्यवंदण करें। वास होप पूजा करें। पीछे केसर चंदनसें पू जा करें। पीछे मध्यान्ह समय, पांचशक स्तवे देव बांदै । पीने गुरु पासे आयके । राई आलोवे । अनुनिमि खमायके विलनो पञ्चक्खाण करै। प्रथम अरिहंत पदका वरण सपेद है। (इससे) आंबिल में चावल (अने) गरम पाणी यह दोइ द्रव्य लेसुं । असो आंबिल पचखै । (पी) अरिहंत पदके बारे गुण है सो चिंतविके बारै नमस्कार करै । सो लिखते हैं (प्रथम सर्व ठिकाणे) इजामिखमासमणो । वं० इत्यादि कहिके नमस्कार करै ।।
॥ ॥अरिहंतके. १२ गुणः॥ॐ॥ १॥ अशोक वृद्ध प्रति हार्य संयुताय श्री अरिहंताय नमः॥ २॥ पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि॥ ३॥ दिव्यध्वनि प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ४॥ चामरयुग प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ५॥ स्वर्ण सिंहासण प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ६॥नाममल प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ७॥ऽनिप्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ८॥त्रत्रय प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ९॥झानातिशय संयुताय श्रीअरि०॥ १०॥ पूजातिशय संयुताय श्रीअरि ॥
११॥ वचनातिशय संयुताय श्रीअरि०॥ . ___ १२॥ अपाया पगमातिशय संयुताय श्रीअरि०॥
॥ ॥ इत्यादि नमस्कार करके । अन्नत्थू ससियणं । (कहिके) १२ बारे लोगस्सको कानसग्ग करें। एकलोगस्स प्रगट कहै । पीछे स्वस्थान क जाकें । चैत्यवंदन करै । पचक्खाण पारिके। आंबिल करै । पहले ज ल पीवे (जब) चैत्यनंदन करिके पावै । पीजै फेर चैत्यनंदन करिके तिवि हार पचक्खाण करै । ( शी णमो अरिहंताणं)। इस पदको २००० गुणनो करै । श्रीपालजीको चरित्र नवपद महिमा सुरें। पूण पहिर दिन
तिशय संयुताको अन्नत्य प्रगट को न के। पतिवि
गुणन पचक्लाण करत्यनंदन कारखाण पार गट कहै । म कहिके ) १२