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रत्नसागर.
रहणेंसें (तीसरीवेर) पांच शक्रस्तवे देव वांदे । सामायक लेके दिन बते पक्किमणो करै । आरती के समय, दीप, धूप, कुशम, पूजा करे। (अथवा ) पहिले भारती प्रमुख करिके पीछे परिक्रमणो करै । ( सोनेंके समय ) इ रिया बही पक्किमके । चैत्यबंदन करिके । राई संथारा गाथागुणके सोवै । निद्रा नावे (जहांतक) नवपदका गुण स्मरण करे ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ द्वितीय दिवश विधि लि० ॥ ॥
॥ ॐ ॥ अब इसीतरे दूसरे दिन प्रजाति करणी सब करिके, सिद्धपदका लाल वर्ण है। (इसीसें) गहुँके रोटीको (आंबिल करें (झी णमो सि i) इसपदको गुणगो दो हजार करै । सिपदके आठगुण है। सो (८) गुणांको गुरु नमस्कार करावे ( सो लिखते हैं ) । ॥ * ॥ सिद्ध पदके (८) गुण ॥
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१ ॥ अनन्त ज्ञान संयुताय श्रीसिधाय नमः ॥ २ ॥ अनन्त दर्शन संयुताय श्रीसि० ॥
३ ॥ अव्यावाध गुण संयुताय श्रीसि० ॥ ४ ॥ अनन्त चारित्र गुण संयुताय श्रीसि० ॥ स्थिति गुणसंयुताय श्रीसिं० ॥
५ ॥
६ ॥
रूपी निरंजन गुण संयुताय श्रीसि० ॥ ७ ॥ गुरुलघु गुण संयुताय श्रीसि० ॥ ८ ॥ अनन्तवीर्य गुण संयुताय श्रीसि० ॥
॥ ॥ यह आठे नमस्कार करिके । अन्नत्थूससि० आठ लोगस्सकौ कानसग्ग करै । एक लोगस्स कहिके पारै । पीछे पूर्वोक्त करणी अनुक्रमसें करे ॥ * ॥ इति द्वितीय दिवश विधिः ॥ २ ॥ *॥
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॥ * ॥ अथ तृतीय दिवश विधि लि० ॥ * ॥ ॥ ॐ ॥ पूर्वोक्त विधिसें प्रजात कर्तव्य करें । आचार्यपद पीले वर्ण है (इसीसे ) चिणाकी दालका बिल करे। (झी णमो आयरियाणं ) इस पदको गुणनो दोहार करै । प्राचार्य पदके ( ३६ ) गुण याद कर के, बत्तीस नमस्कार करै ( सो लिखते हैं ) ॥ ॥
॥ ॐ ॥