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रत्नसागर. ॥ॐ ॥अथ सूतक विचार लि० ॥ * ॥ ॥ ॥ पुत्र जन्म होणेंसें १० दिन सूतक । पुत्री जन्म्यां दिन १२ सूतक । (और) जो स्त्रीकै पुत्र होय । नस स्त्रीकै एक माशको सूतक । पुत्र होते मरण पामें (तो) दिन १ सूतक ॥ परदेशे मृत्यु होइ (तो) दिन १ सूतक ॥ गाय । नेश । घोडी । सांढ । घर माह व्यावै (तो) दिन १ सूत क । मरण हुवां कलेवर घर वाहर लेजाय । जहांतक सूतक । दाश दाशी अपनी नेष्टायें रहते। पुत्र पुत्रादिकका जन्म मरण हो (तो) दिन ३ सूत क (और) जितना महिनाको गर्न गिरै । तितना दिन सूतक । ( अब) कोईकै जन्म मरणका सूतक होनेसें १२ दिन देवपूजा न करै । (जिसमें) मृतककै सूतकमें । घरका मूलकांधिया १० दिन देवपूजा न करै । नरव रका तीन दिन देव पूजा न करै । (और) मृतकनें ब्रूवा हो (तो) २४ पहर पडिक्कमण न करै (जो) सदाका अखंम नियम हो । (तो) समता जाव रखके संबर पणामें रहै । पर मुखर्से नवकार मंत्रकानी नचारण करै नहीं। स्थापना जी के हाथ लगावै नहीं । और जो मृतक कों बूवा न हो (तो) आठ पहर पमिकमण न करै । जेसकै जब बच्चा होय । तब १५ दिन पी दूध पीणो कल्पै । गायकै वच्चो होय (तो) १७ दिन पी दूध पीणो कल्पै । बकरीको दूध दिन ८ पीवै पीणो कल्पै ॥॥
॥१॥ ऋतुवंती स्त्री चारदिन लांमादिकनें न वै ॥ ॥२॥ चार दिन प्रतिक्रमण न करै ॥ ॥३॥ पांचदिन देवपूजा न करै ॥
॥४॥ रोगादिकारणे तीन दिवश नपरांत कोईस्त्रीके रक्त चलतादीसै जिसका बिशेष दोष नहीं । मुच बिबेकसे पवित्र होकर दिन ५ पीने थापना पुस्तक वै । जिन दर्शन करै । अग्रपूजा करै। परंतु । अंग पूजा न करै । साधुकों पमिलानै कतुवंती तपस्या करै सो तो सफल होय (परंतु) ऋतुदिनमें जिनपूजा, प्रतिक्रमणादिक, किया सफल न होय ॥ ऐसाचर्चरी ग्रंथमें कहाहै ॥ * ॥