________________
दिनप्रति १४ नियम चितारणेंकी विधि. . ४३९ ॥ॐ ॥ जिसके घरमें जन्म मरणका सूतक होय। नहां १२ दिन साधु आहार पाणी न वहरै ॥ सूतकवाले घरका जल अग्निसें १२ दिन देव पूजा न करै॥ ॥
॥ ॥ निशीथ सूत्रके १६ शोलमानद्देशामें जन्म मरण सूतक घर धुर्गउनीक कहा है ॥ॐ ॥ गायके मुत्रमें २४ पहरपी। नेशके मुत्रमें १६ पहर पी । गामर, गधेडी, घोमीके, मुत्रमें ८ पहरपी। नरनारीकै मुत्रमें चार पहर पीचै । समुर्बिम जीव नपजै ॥ * ॥
(इत्यादि ) संकेप सूतकका विचार इहां लिखा है । विशेष विचार शास्त्रांतरसें जाणना ॥ इति सूतक विचार संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ॐ॥ 1 ॥ श्रावक चवदै नियमका प्रमाणकर (सो)लि० ॥ - ॥ ॥ सचित्त १। दब्ब २। विगई ३॥ पाणहि ४ । तंबोल ५ । वत्थ ६ । कुसुमसु७ ॥वाहण ८ । सयण ९। विलेवण १०॥बन ११ । दिशि १२ । न्हाण १३ । लत्ते सु १४ । (अर्थः)॥ श्रावक नितप्रति नि यम संभालै । दिनमें जो बस्तु अपनें अंग खातै लगे । नसीका प्रमाण रक्खै । नपरांत त्याग करै । तहां प्रथम (सचित्त वस्तुको परिमाण करै) मट्टी सर्व जाति । पाणी सर्व जाति । जल, अग्नि, वायु । वनस्पतीका दन जेदन । तरकारी सर्वजाति । फल सर्वजाति । परवल । तोरी। केला। इत्या दि सच्चित्तका परमाण करै॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ (दूसरा द्रव्य परिमाण)॥ तहां धातु वस्तु की शली। (तथा) अपणी आंगुली बिनां । जो वस्तु मुखमै दीजै। सो सर्व द्रव्यकी गिण ती में आवै । नामांतर । स्वादांतर । स्वरूपांतर । परिणामांतर । द्रव्यांतर होणेंसें द्रव्यांतर होइ । (यथा) गहुं एक द्रव्य । तिसकी पतली रोटी। फी रणा रोटी । वेढवा रोटी। बाटी । यह सर्व द्रव्य जूदा कहिये । ( इस प्रकार) सर्व द्रव्य खांणेमें आवै । नात दालि । रोटी । मांमियो । पलेव । तरकारी सर्व जाति । पापम । खीचीया । लमू सबै जाति। फिणी घेवर । हेसमी । खाजा। (इत्यादि समस्त द्रव्य परिमाण करै) इहां नत्कृष्ट द्रव्यको ना म ले रक्खे (तो) एकही द्रव्य कहीयै । (जैसें) मेवैकी खीचमीका नाम