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रत्नसागर श्रीजिन पूजा संग्रह.
॥ * ॥ अथ आग्मी गंधवटी पूजा ॥ * ॥
॥ * ॥ घनसार, अगर, सेल्हारस, प्रमुखसें सुगंध बट्टी करि । जिनेश्वर जे खमा रहै ॥ ( दूहा ) ॥ अगर सेल्हारस सार । सुमती पूजा आ मी। गंधवटी घनसार | लावै जिनतनु नावसुं ॥२॥ (राग सोरठ ॥ * ॥ * ॥ कुंद किरण शशि कजलो जी (देवा) । पावन घस घन सारो जी। सुरभि सिखर मृगनाभिनो जी (देवा) । चुन्नरोहण अधिकारो जी ॥ १ ॥ वस्तु सुगंध जब मोरियो जी (देवा) । अशुभ करम चूरी जै जी । अंगण सुरतरु मोरियो जी (देवा) । तब कुमती जन खीजै जी । ( तब सुमती जनरी जी ) ॥ २ ॥ ॥
॥ * ॥ अथ विधि (राग सामेरी ) ॥
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॥ * ॥ पूजोरी माई जिनवर अंगसुगंध (जिन० पू० ) । गंधवटी घ नसार दारै । गोत्रतीर्थकर बांधे। (जल ०२) (पू) ॥ १ ॥ आठमी पू जागर सेल्हारस | जावै जिन तनु रागै । धारकपूर नाव घन वरषत । सामेरी मति जागे ॥ ( २ ) ( पू० ) ॥ इति आठमी वरास चूर्ण पूजा ॥८
॥ * ॥ अथ नवमीध्वज पूजा ॥ *
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॥ ॐ ॥ हिवे सधव स्त्री नेली होके कऊन थाल में । कुंकुमको साथि यो करे। प्रकृत थाल में धरै । श्रीफल रूपानांणो धेरै । धजा थालमें धरि ara स्त्री माथै रक्खी। गीत गान गावतां । सर्व वाजित्र बाजतां । तीन प्रद दिणा देवै । पीछे ध्वजा ऊपरि गुरु पासें वासक्षेप करावे । प्रभू सन्मुख गुहली करे | ऊपर तांसें साथियो करै । सुपारी चढावै । मुखै ऐसा कहै । ॥ ॥ ( दूहा) मोहनध्वज घर मस्तकै । सुहव गीत समूल । दीजै तीन प्रदक्षिणा । परसिध नवमी पूज ॥ १ ॥ (रागमेघगौमी ) | ( वस्तु ) सहस जोयण २ हेममय दंग युतपताक पंचेवरण | धुमधुमंत घुग्घरीय बाजे । मृदुसमीर लहिकै गयण ( ल० ) । जाण कुमतिदल सयल नाजै ॥ सुरपति जिम बिरचे धजाए (हांएवि ० ) नवमी पूज सुरंग । ( न० ) ति पर श्रावक धजबहन | ( ति० ) पै दान अनंग | ( प्रा० ) १ ॥