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सतरनेदी पूजा ... ॥ ॥ नाग पुन्नाग मंदार नवमालिका । मल्लिका सोग पारिध कलीए (मलां पा०)॥२॥ मरुक दमणक बकुल तिलक वासंतिका । लाल गुलाल पामल निलीए । (लां पा०)॥१॥ जासुमणि मोगरा वेनला मालती। पंचवरणे गुंथी मालतीए । (जलां गुं० ) हेमाल जिनकंठ पीठे उवी लह लहै। जाणि संताप सब पालतीए। (जलां० )॥इति ॥ ॥
॥अथ विधिः । (राग आसागरी)॥ ॥... ॥ॐ॥ देखी दामा कंठ जिन अधिक एधतनंदै। चकोरकुं देखि जिम चंदै। (दे०) ॥ १ ॥ पंचविधि बरणरची कुशमांकी ॥ जैसी रयणाहे (जै०) बलि सुह मंदै ( देखी०)॥२ ॥ उहीरे तोमर पूजा तबमार धूजै सब अरियण ( हारे स०) होइ तिम बुदै । (दे०)॥३॥ कहै साधु की रत सकल आस्या सुख । नविक नगत (हारे न० )। जे जिन बंदै । (दे०)॥४॥इति उही टोमर फूलमाला पूजा॥६॥ एकही प्रनुजीके कंठे फूलमाला चढावै ॥॥ ॥ॐ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ सप्तमी अंगरचन पूजा ॥ ॥ ॥ ॥ पंचवरणा फूल केसरसें अंगीरचै । सो हाथे लेई । मुखै इम पढे॥ॐ ॥ (दूहा)॥ केतकी चंपक केवमा । सोन्नै तेम सुगात । चाढो जिम चढता हुवै । सातमी यै सुख सात॥१॥॥॥ (राग केदारो गौमी) ॥ * ॥ कुंकुम चरचित बिविध पंच वरणक कुशमसुंए ॥ (हारे अ.) कुंद गुलाबसुं चंपको दमणको जाससुंए ॥१॥सातमी पूजामें अंगी अलंकीयै। अंग आलंक मिसमाननी मुगति आलिंगियैए ॥२॥ इति ॥ ॥
॥ ॥अथ बिधि (रागनैरवी)॥४॥ ॥ॐ ॥ पंचबरणी अंगी रची कुशम जाती। ( पं०)। कुंद मचकुंद “गुलाब सिरोमणि । कर करणी सोवन जाती। (पं०)॥ १॥ दमणक मरु
क पामल अरविंदो । अंश जुई बेनुलवाती। पारधि चरण कलार मंदारो। विण पट कूल बनी जाती। (पं०)॥२॥ सुर नर किन्नर रमणि गाती । भैरवी कुगति बततिदाती। (पं०)॥३॥इति सातमी अंगीरचन पूजा ॥७॥ सुगंध पुषपै करी अत्यन्त नक्तीसें जगवंतके शरीरै अंगी रचै ॥