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आनंदघनजी कृत स्तवन संग्रह -
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रे । प्रकुशल अपचय चेत । अथ अध्यातम श्रवण मनन करीरे । परीशी जन नय हेत ॥ संभव ० ॥ ४ ॥ कारण जोगेंहो कारज नीपजेरे । एमां कोई न वाद । पण कारण विण कारज साधीयेंरे । ए जिन मत ननमाद || संभव ॥ ५ ॥ मुग्ध सुगम करी सेवन आदरेरे । सेवन अगम अनूप देजो कदाचित सेवक याचनारे । आनंदघन रस रूप ॥ संजव० ॥ * ॥ ॥ * ॥ अथ श्री अभिनंदन जिन स्तवन ॥ * ॥ ॥ * ॥ प्राज निहेजोरे दीसे नाहलो ॥ ए चाल ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ अभिनंदन जिन दरिशण तरसीये । दरशण दुर्लनदेव । मत २ दैरे जो जई पूबीयें। सहु थापे ग्रह मेव ॥ अनि० ॥ १ ॥ सामान्ये करी दरशण दोह लूँ । निरणय सकल विशेष । मदमें घेरथोरे अंधो किम करे। रवि शशि रूप विलेख । अनि ॥ २ ॥ हेतु विवादें हो चित्त धरी जोईयें । प्रति दुरगम नय वाद | आगमवादें हो गुरुगमको नही । ए शवलो विषवाद || अनि० ॥ ३ ॥ घाती हूँगरामा प्रतिघणा । तुऊ दरिशण जगनाथ । धीठाई करी मार ग संचरूं। सेंगू कोई न साथ ॥ अनि ॥ ४ ॥ दरिशण २ रटतो जो फरूं तो रण रोऊ समान । जेहने पीपासा हो अमृत पाननी । किम नाजे विष पान ॥ अभि० ॥ ५ ॥ तरस न आवेहो मरण जीवन तणो । सीजे जो दरिशण काज | दरिशण दुर्लन सुलन कृपा थकी | आनंदघन महाराज ॥ ० ॥ ६ ॥ * ॥
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॥ * ॥ अथ श्री सुमति जिनस्तवन लिख्यते ॥
॥ * ॥ राग वसंत (तथा) केदारो ॥ *॥ ॥ * ॥ सुमति चरण कज प्रातम अरपणा । दरपण जिम अविकार । सुग्यानी ॥ मति तरपण वहु सम्मत जाणियें । परिसरपण सुविचार ॥ सु ग्यानी ॥ सुमति० ॥ १ ॥ त्रिविध सकल तनु घर गत आतमा । वहिरात मधुरि भेद || सु० ॥ बीजो अंतर प्रतम तीसरो । परमातम प्रविवेद ॥ सु० ॥ सुमति० ॥ २ ॥ तम बुधें हो कायादिक ग्रह्यो । बहिरातम अ घरूप । सुग्यानी । कायादिकनो हो साखी घर रह्यो । अंतर आतम रूप ॥ सुग्यानी ॥ सुमति० ॥ ३ ॥ ज्ञानानंदेवो पूरण पावनो । बरजित सकल
॥