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मंदरजानेकी पूजन करने की विधि इयाइं (इत्यादि) इहसंतो तत्थ संताई (तक) जिन वंदन प्रणिधान १॥ जावंति केवि साहु ( इत्यादि)तिविहेण तिदंम विरियाणं (इहां तक)मु नि वंदन प्रणिधान २॥ जय बीयरायसें (लेके) आनवम खमा तक। प्रा र्थना रूप प्रणिधान ३॥ ॥ (ऐसें दशत्रिकका पहला द्वार कहा) ॥8॥ (अब पांच अनिगमन साचवणेका दूसरा द्वार कहतेहैं)॥ ॐ ॥ सचित्त द्रव्य कुशमादिक अपनेपास होय, उसकुं अलग रख देना १ ॥ (और) राज चिन्ह, मुगट, बत्र, खम्ग, चामर, पाका, अचित्त वस्तू गेमना । आ नूषण प्रमुख पहस्या रखना २। मन एकाग्र करना ३॥ एक पट्ट उत्तरासंग करना ४॥ जिन बिंब देखतेही (नमो नुवण वंधुणो) ऐसें नमस्कार करना ॥५॥ ॥ ए दूसरा पार कहा॥ ॥ (अब तीसरा द्वार दो दिशीका) पुरष दहणी दिशा वैग। नगवंतकों वांदे ॥ स्त्री, बांइ दिश बैठके नगवंत को बांदे ॥ ॥ (अब चौथा धार तीन अनिग्रह) ॥ * ॥ अनिग्रह देव बांदणांमें कहाहे ॥ (जघन्य ) नव हाथ दूर वैठके देव वांदे १॥ (मध्यम) नव हाथसें नपरांत बैठके देव वांदे २॥ (नत्कृष्ट ) ६० हाथ दूर वैठके देव वांदै ३॥ (अब पांचमा धार चैत्यवंदनका)॥ ॥ (सो) जघन्य १॥ मध्यम २॥ नत्कृष्ट ३॥ तीन भेद है (तिहां) णमो अरिहंताणं (इत्या दिक कहके) वा । एक दोय गाथाका नमस्कार कहके । शकस्तव कहना (ए जघन्य चैत्य वंदन १) जिस देव वंदनमें स्थापनार्हत स्तवदंझक । नमोत्थुणंसें (लेके) अरिहंत चेश्याणं (इत्यादिक संपूर्ण कही) एक स्तुति कहै (सो)॥ मध्यम चैत्यवंदन (तथा) कोई आचार्य कहै ॥ पांच दमक सहित । थूई गाथा (४) कहै (सो) मध्यम चैत्यवंदन कहिये॥(तथा) विधिपूर्वक शकस्तवादि पांच दमक । जय वीयराय पर्यंत । आठे थुई ए देव बांदै । (सो) नकृष्ट चैत्य वंदन कहियै ॥ ॥ (अब उहा प्रार पंचांग प्रणिपात करै । दो जानु । दो हाथ (और) मस्तक (ए) पांच अंग मिलायके जमीनमें लगावै ॥ ॥ (अब सातमा प्रार)॥ ॥ जव न्ये एक गाथासें लेकर नत्कृष्ट एक सो आठ श्लोक (तथा) काव्यसें प्रनू की स्तवना करै ॥ ॥ इति ॥ ॥ ॥
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