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- पोषमाश, ० वाणी ब्रह्मा वादनी, स्तवन ३८९ तो मकरि संकाणि ॥ २४॥ * ॥ (ढाल )॥६॥ पाश मनोरथ पूरा करै । वाहण एक वृषन जो तरै । परिकरथी परियाणो करै । इक थल चढ बीजै ऊतरै ॥ २५ ॥ बारै कोस आव्या जेतले । प्रतिमा नविचाले ते तले । गोगी मनह विमासण थई । पास नुवन ममावू सही ॥ २६॥ आ अटवी किमकरुं प्रयाण । कुटको कोइ नदीस पाहाण । देवल पास जिनेसर तणो मंमा किम गरथै विणो ॥२७॥ जलविन श्रीसंघरहस्यै किहां । सिला वटो किम आवै इहां । चिंतातुर थयो निद्रालहै। यदराज आवीनें कहै ॥ २८॥ गुंहली ऊपर नांणो जिहां । गरथवणो जाणी जे तिहां। स्व स्तिक सोपारीने गणि । पाहण तणी नबटस्यै खाणि ॥ २९ ॥ श्रीफल सजल तिहां किल जूओ । अमृत जल नीरसरसी कूओ । खाराकूत्रा तणो इह सैनांण । नूमि पड्यो चै नीलो गण ॥३०॥ सिलावटो सीरोही वसै। कोढपरावियो किसमिसै। तिहां थकी तूं इहां आण जे । सत्यवचन मा हरो मान जे ॥३१॥ गोठीनो मनथिर थापियो। सिलावटैने सुहणो दि यो। रोगगमीनें पूरुं आस । पाश तणो मंझे आवास ॥३२॥ सुपन माहे मान्यो तेवैण । हेम वरण देखाड्यो नैण। गोठी मनह मनोरथ हुवा। सि चावटैने गया तेमवा ॥३३॥ सिखा वटो आवै सूरमो । जीमें खीरखांम घृत चूरमो। धम घाट करै कोरणी । लगन नलै पाया रोपणी ॥ ३४॥ थन २ कीधी पूतली । नाटक कौतिक करती रली । रंग मंम्प रलियाम जो रसै। जोतां मानवनों मन वसै ॥३५॥ नीपायो पूरो प्रासाद । स्वर्गस भो ममे आवास। दिवश विचारी इंमो घड्यो । ततखिण देवल ऊपर चड्यो ॥३६॥शुन लगन शुन वेलावास । पचासण वैठा श्रीपास । महिमा मोटी मेरुसमान । एकल मिल वगमे रहै वान ॥३७॥ वात पुराणी में सां नली। तवन मांहि सूधी सांकली। गोठी तणा गोतरीया अडै । यात्र करीने परने पछै ॥ ३८॥ * ॥ (दूहा) ॥ विघन विमारण यह जगि । तेहनो अकल सरूप । प्रीत करै श्रीसंघसें । देखामै निजरूप ॥ ३९ ॥ गिरुओ गौमी पाशजिन । आपै अरथनंमार । सानिध करे श्रीसंघनें । आस्या पूरण हार ॥ ४० ॥ नील पलाणे नीलहय । नीलो थइ असवार । मारग चूका