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रत्नसागर.
॥७॥ (गु०) नहिं आपिस तो मारीस मुरमीस । मोर बंध बंधास्यैजी। पुत्र कलत्र धन हय हाथी तुझ । लाउ घणी घर जास्यै जी॥८॥(गु०) मारग पहिलो तुमने मिलस्यै । साहथवाह जे गोगजी । निलवट टीलो चोखा चे ढ्या । वस्तु बहै तमुपोठीजी॥९॥ (गु)॥॥(दूहा)॥४॥ मनसुवीहनो तुरक मो। मांने वचन प्रमाण । बीबीने सुहणा तणो। संनलावै सहिनाण ॥१०॥ बीबी बोलै तुरकनें । वमा देव है कोइ । अबसताब परगटकरो। नहीं तर मारै सोय ॥ ११॥ पाउलीरात परोमीयै। पहली बंधै पाज । सुहणा माहे से बनें। संनलावै यह राज ॥१२॥ * ॥ ( ढाल)॥* ॥ एम कही या आयो राते । सारथ वाहुनें सुहणे जी। पाशतणी प्रतिमा तुं लेजे। लेतो शिरमत धुणे जी॥ १३॥ (एम०) पांचशेटका तेहनें आपे । अधिको म
आपिस वारोजी। जतन करी पुहचामे थानकि । प्रतिमा गुण संनारो जी॥१४॥ (एम० ) तुझने होसी बहु फलदायक । गाई गोठीने सुण जे जी। पूजीस प्रणमीस तेहनापाया । प्रहनीने थुणजे जी॥१५॥ (एम.) सुहणो देईनें सुरचाल्यो । अपने थानक पहुतो जी। पाटण मांहें सारथवाहू हीडै तुरकनें जोतोजी ॥१६॥ (ए०)॥ तुरकै जातां दीगे गोठी । चो खा तिलक लिलाम जी । संकेत पहुतो साचोजाणी । बोलावै बहुलाम जी ॥१७॥ (ए) मुज घरि प्रतिमा तुमनें आपुं । श्रीपाश जिणेसर केरी जी। पांचसै टक्का जो मुफ आपै । मोलन मांगुं फेरीजी ॥ १८॥ (ए.) नांणो देई प्रतिमा लेई । थानक पहुतो रंगेजी। केशर चंदन मृगमद घोली विधमुं पूजा रंगेजी ॥१९॥ (ए०) गादी रूमी रूनी कीधी। ते मांहि प्रतिमा राखैजी । अनुक्रम आव्या परिकरमांहे। श्री संघने सुरसाखे जी ॥२०॥ (ए०) नव दिन २ अधिकाथाय । सत्तर द सनात्रोजी । गम २ ना दरशण करवा । आवै लोक प्रनातोजी ॥ २१॥ (ए० )॥8॥ (दूहा) इकदिन देखै अवधिमुं। परिकर पुरनो नंग । जतनकरुं प्रतिमा तणो । तीरथ अझै अनंग ॥ २२॥ सुहणो आपै सेठनें । थल अटवी नाम । महिमा थास्यै अति घणी । प्रतिमा तिहां पुहचाड ॥ २३॥ कुश ल खेम तिहां अवै। तुमने मुझनें जाणि । संका गेमी काम करि । कर
नद सनात्रोजी ।
रखा। आवै लोक प्रकार
(दूहा ) कवि