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रत्नसागर. पारी। मुखै लोगस्स कहै (जो) रात्रे मोटको गुण संबंधी दूसण लागो हुवै (तो) कानसग्ग मांहें । सागरवरगंजीरा । सूधी चिंतवीय (इतिसंप्रदायः।
॥ * ॥ किहां इक पहिला कुसुमिण पुस्समिण कानसग्ग करी । पठे चैत्यवंदन करवो कह्यो । पिण परमार्थ एकहीजलै । प । पमिक्कमण वेला सीम सिज्जाय ध्यान करै ॥ * ॥ हिवै पमिक्कमण ठाववानो अवसर हुवां ___॥१खमासमण देई ( श्री आचार्यजी मिश्र ) कही वांदीयै ॥ २
खमासमण देई (श्री नपाध्यायजी मिश्र) कही वांदीय ॥ ३ खमासमण। जंगम युग प्रधान वर्तमान नहारक श्रीपुज्यजी का नाम कही वांदीयै ॥ ४ खमासमणे । सर्व साधूजीकुं वांदीय ॥ इम च्यार खमासमणे पडि. कम णो ठगवी । इबकार समस्त श्रावको वांदूं (कही) गोडा लीय वैसी मस्तक नमावी । दोय हाथे । मुहपत्ती मुखें देई । सबस्सवि राइय ( इत्यादि कहै ) पिण इला कारेण संदिस्सह इवं ( इसोन कहै ) पने शकस्तव कही। कलो थई । करोमि नंते सामाइयं । सावजं जोगं पञ्चक्खामि ( इत्यादि कही) इनामि गर्न कानसग्गं । जोमे राइन ( इत्यादि पाठ कही ) तस्मुत्तरी । अन्नत्थू ससिएणं कही । चारित्र शुधि निमित्तें ॥१ लोगस्सनों कानसग्ग करी (पारी) दर्शन शुधि निमित्तें । लोगस्स कही । सबलो ए अरिहंत चेइयाणं करोमि कानसग्गं । वंदण वत्तिा ए ( इत्यादि कही)१ लोगस्सनो कान्सग्ग करी ( पारी) झानातीचार शुधि निमत्तें। पुक्खर वर दीवढे। (कही) सुयस्स भगवन करेमि कानसग्गं । वंदणव त्तिाए ( इत्यादि कही ) कानसग्ग करै । कानसग्ग मांहें । आजृणा चौपुहरी रात्रि मांहें । इत्यादि आलोयण पाठ चिंतवे ॥ ॥ ॥ (अनें एनावैतो) आठ नव कार चिंतवीयै। पवै कानसग्ग पारी। सिघाणं बुघाणं (कही) संमासा प्रमार्जन पूर्वक बैसी (मुहपत्ती पमिलेहै ) पचै दो वांद णादै ( ते इम ) अविग्रह बाहिर ऊनो थको। आधो नमी ॥ इहामि खमा स। वंदि० जाव० । नि० । अणुजाणह मेमिनग्गरं (इतरो कही) जृमि प्रमार्जतो धको । निस्सही कही । कांइक अवग्रह मांहि पैसी । संमा सा प्रमार्जी । ककडू वैसी। मावै हाथ मुहपत्ती लेई । मावे कान थी जी