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प्रनातसामायक राईप्रतिक्रमण विधि. . १०३ सामायिकदम नच्चरावोजी (गुरु कहे उचरावेमो) पठे। करेमिचंते सामाश्यं (इत्यादि) सामायकसूत्र । गुरुवचन अनुनाषण करतो थको । तीनवार नच री। खमासमण देई । डाकासंन । इरियावहियं पडिकमामि (गुरुको पमिक्कमह ) प इलं कही । इछामि पमिक्कमित्रं इरियावहियाए (इत्यादि पाठकहै) इरियावही पमिकमी। एक लोगस्सनो कानसग्गकरी । णमो अ रिहंताणं कही । कानसग्गपारी । मुखें प्रगट लोगस्स कही। खमासमण देई इछा० सं० न० । वैसणो संदिस्सावू (गुरु कहै संदिस्सावेह) पने लुक ही। वले खमासमण देई। इछाका० सं० ज०। बैसणो गर्ल (गुरु कहे ग एह ) पछे श्वं कही । खमासमण देई । इछाका० सं० न० । सिज्जाय सं दिस्सा (गुरुकहै संदिस्सावेह) प इडं कही। वलेखमासमण देई । इला का० सं० न० । सिज्जाय करूं (गुरुकहै करेह ) इलु कही। वले खमासमण देई। कनो थको आठ नवकार सिकाय करै । तथा शीतकालादि हुवै (तो) खमासमण देई । इलाका संज। पांगरणो संदिस्सावू (गुरु कहै संदिस्तावेह ) प श्वं कही । खमासमण देई। इवा० सं००। पांगरणो पमिग्याळ (गुरु कहै पमिग्याएह) पछे श्ठं कही वस्त्रग्रहण करे। तथा सामायकवंत (अथवा) पोसहीता श्रावकप (कोई ) सामायकवंत (अथ वा) पोसहीतो श्रावक वांदै (तो) वंदामो एहवं कहै । जो कोई बीजो वांद (तो) सिज्जायं करेह । एहवो कहै ॥ * ॥ ॥ॐ॥ इति प्रनात सामायक ग्रहणविधि ॥१॥ ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ राई प्रतिक्रमण विधि लिख्यते ॥ * ॥
॥ (हिवे) एक खमा समण देई । इलाका० सं० न०। चैत्यवंदन करूं (गुरुकहै करेह ) प→ इहं कही। जयन सामी २ ( इत्यादि जय वीय राय सूधी चैत्यवंदन करै । पहें खमासमण देई । इचाका०सं० ज० । कुसुमिण पु स्मुमिण राई प्रायछित्त विसोहणत्थं करेमि कान्सग्गं (गुरु कहै करेह) पचै इबँकही। कुसुमिण पुस्सुमिण राई प्रायवित्त बिसोहणत्थं करेमि का नसगं । अन्नत्थू ससिएणं ( इत्यादिकही) (४) लोगस्सनो कानसग्ग। चंदेसु निम्मलयरा ॥ सूधी चिंतवी । णमो प्रारहंताणं कही । कानसग्ग