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गुपति गोपाहे ॥ न० ॥२॥
ज्ञान गस्थ तारी हे। जिन
लावण्यां संग्रह नवपद लावणी. ४९३ ऊपर प्रेम न करता । मनकी ममता मारी हे ॥न०॥१॥ गरब गालकर गुपति गोपवे । गत निग्रंथकी न्यारी हे। कनक कामिनीके नहिंजोगी। वेपूरा ब्रह्मचारीहे ॥ न०॥२॥ कायाके जीव अनाथी । ननके वे हित कारी हे । करम काटकर केवल पावे । ज्ञान गरथ गुण नारी हे ॥ न. ॥३॥शुच श्रघासें सुमति सेवी । निज आतमकुं तारी हे। जिनवरकुं जिनदाश वीनवे । ननके चरण बलिहारी है ॥ न०॥४॥ ॥१॥
॥ॐ॥कुगुरुकी लावणी॥2॥ ॥ॐ॥ त© तजं में नन कुगुरुकुं । कनक कामिनी धारी हे। ज्ञान ध्यानकी बात न जानें । अष्ट करमसें लारी हे॥त॥१॥करी कपा लें बनूत लपेटी। शिरपर जटा बधारी है । कान फामकर मुद्रा पहेरता उसके घरमें नारी हे॥त०॥२॥जोग लेई कर जीव विणासे । वे मद्य मांशाहारी हे । कूमा पंथी जगतकुं करता । मुखसें कहे आचारी हे ॥ त० ॥ ३ ॥ कहुं ओगुण कुगुरूका कब लग । साध नही संसारी हे। आप मुबे औरनकुं मुबावे । पुर्गतिका अधिकारी हे ॥ त० ॥ ४ ॥ समकि त श्रधा जैन धर्मकी। नहि कुगुरुकों प्यारी हे। जिनवरकुं जिनदाश वी नवे । कुगुरु संग खुवारी हे ॥ त०॥५॥ ॥५८॥ ॥ॐ॥
॥*॥श्री नवपद लावणी॥ॐ॥ .. ॥ ॥ जगतमें नव पद जयकारी। पूजतां रोग टले नारी (ए आं कणी ) पथम पद तीर्थ पती राजे । दोष अष्टादशकुं त्याजे । आठ प्रा तीहारज गजे । जगत प्रनु गुण बारे साजे ॥ दोहा ॥ अष्ट करम दल जीतके । सकल सिघ ते थाय । सिघ अनंत नजो बीजे पद । एक सम य शिव जाय । प्रगट नयो निज स्वरूप नारी ॥ जगत० ॥ १ ॥ सूरि प दमें गौतम केशी । नेपमा चंद्र सूरज जैशी । उगारयो राजा परदेशी । एक नवमांहें शिव लेशी ॥दोहा॥ चोथे पद पाठक नमुं । श्रुत धारी न वशाय । सब साहु पंचम पदें । धन धन्नो मुनिराय । वखाण्यो बीर प्रनु जारी॥ जगत० ॥२॥॥ द्रव्य खटकी श्रधा आवे । सम संवेगादिक पा वे । बिना ए ज्ञान नहिं किरिया। जैन दरशनसें सब तरिया ॥दोहा॥