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रत्नसागर.
झान पदारथ सातमें । पदमें आतमराम । रमतां रम्य अध्यातमें । निज पद साधे काम । देखता बस्तु जगत सारी ॥ जगत० ॥४॥जोगकी महिमा बहु जाणी। चक्रधर गेमी सब राणी । यती दश धरम करी सोहे। मुनि श्रावक सब मन मोहे ॥दोहा॥ करम निकाचित कापवा । तपकुठार करध्याय । कमायुत नवमुं पद धरे। कर्म मूल कट जाय । नजो तुम नवपद सुखकारी॥ पू० ज०॥ ४॥ श्री सिघचक्र जजोलाई । अचामल तप बि घिसें थाई। पाप त्रिहुं जोगें परिहरजो। जाव श्रीपाल परें करजो॥दोहा॥ संवत उगणीस सत्तरा समें । जेपुर श्री जिन पाश । चईत्र धवल पूनम दिने। सकल फली मुफ आश । बाल कहे नव पद बी प्यारी ॥ जगत० ॥५॥६१॥
॥॥श्री केशरीयानाथ लावणी॥॥ ॥ ॥ (दूहा ) आदिकरन आदिम जगत । आदि जिणंद जिनराज ॥
धूलेवनाथ जाचो धणी। वरनुं श्री महाराज ॥१॥ ॥ ॥ कास्यप गोत्र ईवाग वंशमें। मरुदेवा जननी जायो । नानि नरेसर वंश उजालन । आदि धर्म जश प्रगटायो ॥ १ ॥ चोसठ सुरपति देव देवी मिल । मंदिर गिरपै न्हवरायो । इसो षन निधि प्रगट कल्प तरू । सुरनर मुनिजन नित्य ध्यायो ॥२॥ खमंग देशमें नगर धूलेवें। जास दमामा घुरता हे । जाकी महिमा अपरंपारा । कविजन कीर्ति क रता हे ॥३॥ आदौ मूरत काल असंख्यकी । पूजी सुरगण असुरिंदा। सुरपति नरपति वंदित पद जुग । वलि पूजित सूरज चंदा ॥ ४ ॥ लाख अग्यार हजार पंचाशी । वरश पांचशे पंचासा । इतने बरश पर लंका गढमें । पूजित रावण गुनरासा ॥ ५ ॥रामचंद्र शीता अरु लग्मन । ए मूरत पूजन ल्याए । नयरी अयोध्या जाते अधबिच । नयर नजेणी ठह राए॥ ६॥ प्रजापाल नरपतिकी तनया । सुंदरि मयणां धरमनकी । बाप करम अरु आप करमकी। नई लमाई मरमनकी ॥७॥ आप करमके ऊपर नृपनें । कुष्टी वर परणाई । मयणां चिंतें कांई नवाई। करम ल खी सो बनि आई ॥८॥इकदिन जिन पूजन गुरुवंदन । आई श्री जिन मंदिर। वंदन पूजन करके इकचित । ध्यान धरे मन कंदरपें ॥९॥इति॥