________________
७७४ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. निवृतिवासी ॥ जय० ॥५॥पंचज्ञानकी आरती करतां । नवभारती गजे ज०॥ जिम वरदत्त कुमर गुण मंजरी। तिम भक्ती कीजै ॥ जय ॥६॥ वृह त् जट्टारक खरतर पति जिन । हंससूरि राया ॥ जि०॥ तत् पद कज मधु कर कंचन निधि ॥ आनंद वरताया ॥ ज०॥७॥इति ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ मंगल दीवो ॥ ॥ ॥॥ दीवोरे दीवो मंगलदीवो। नुवन प्रकाशक जिन चिरंजीवो॥दी० ॥१॥ चंद्र सूर प्रजु तुम मुख केरा । लुगण करता दै नित्पफेरा ॥ दी० ॥ ॥२॥जिन तुझ आगल सुरनी अमरी। मंगल दीप करी दिये जमरी । दी० ॥३॥ जिम जिम धूपघटी प्रगटावे । तिम तिम नवनां पुरित दमावै. दी०॥४॥नीर अक्त कुसुमंजली चंदन। धूप दीप फल नैवेद्य बंदन । दी॥५॥ इणपरै अष्ट प्रकारी कीजे। पूजा स्नात्र महोत्सव पत्नणीजै ॥ दी०॥
॥ ॥अथ मंगल भारती॥ ॥ ॥ * ॥विजन मंगल आरती करियै ॥ जनम जनमकी आरति हरियै ॥ ज०॥१॥आरती प्रथम जिनेसरजीकी। दारुण विघन निवारण नीकी ॥ ज० ॥ दूजैपद श्रीसिघ दिणंदा। आरती करत मिटत नवफंदा ज०॥२॥तीजे पद श्रीसूरि महंता। मारग शुध प्रकाश करंता ॥ ज० ॥ चौथे पद पाठक गुणवंता। आरती करत हरत नव चिंता ॥ ज० ॥ ३ ॥ पंचमी आरती साधुन केरी । कुगति निवारण शुनगति शेरी ॥ ज०॥ शिव सुखकारण श्री जिनवाणी। बही आरती झान वखांनी॥०॥ ४ ॥ सा तमी आरती आनंदकारी । समकित व्रत गृहि प्रतिमा धारी । न०॥ यह विध मंगल आरती गावै । शुधकमा कल्याण ते पावै ॥०॥५॥३०
॥ ॥ अथ श्रीलदमी मोहन कृत स्तवन संग्रह ॥ ॥
॥ ॥ अरिहंत नमो नगवंत नमो। जिनराय आदीशर नित्य नमो।। लमो नानि मरुदेवानंदन, आदिनाथ जगनाथ नमो ॥ अरि० १॥ जग हितकारक बांतिदायक, ग्यान विमल गुणधार नमो ॥ नमो नमो अवि चलं सुखदायक, शांतिसूरत जग तातनमो ॥ परि०.२ ॥ अतिशय धारकं.