________________
लक्ष्मीमोहन स्तवनसंग्रह.
७७५
सुर नर पूजित, सहुगुणधार सुदेवनमो ॥ जिनगुण ग्राहक श्रीवरपावत, मु क्तिमोहन जयकार नमो ॥ चरि० ३ ॥ इति श्री प्रदिजिन स्तवनम् ॥ * ॥ ॥ * ॥ गजल ॥ ताल पंजाबी ॥ ॥
॥ ॐ ॥ जबसें चेतन पावत निजगुण, प्रातम ध्यान लगाते हैं। प्रातम देखत सहुसुख लेखत, सोहं ध्यान लगाते हैं || सोहं सोहं सोहं जपतां सहु रिकर्म खपाते हैं। सिद्धि अचल अविनाशी वसुगुण पुरुषोत्तम पद पाते हैं ॥ १ ॥ निज घरमें बैठे प्रय सुख पाते हैं। जब जगमें रहे सहुजीव ध्याते हैं । कर जोगी करके जिनगुण गाते हैं । सहुनवि मिलके मस्तक नमाते हैं ॥ २ ॥ देव सेतेहैं, इंद्र सेतेहैं, सार जगतका पाते हैं, जब पार जगतका प्राते हैं ॥ ३ ॥ जैनप्रकाश, करत हुलाश, शिवश्रीपाश, मोहनप्राशः ॥ ४ ॥ जब० ॥ २ ॥ ॥ ॥ रागकैरवो, जी साहब नतीजा• ॥
॥
॥ ॐ ॥ मेरे साहब जिनंदा दिवसिया मे० ॥ सुनोरी समकितधर नर नारी सेवो शिवश्रीनृप ॥ जिनं० टेक ॥ ध्यान दिलमें धारके सेवत बीशथा नकों, जिननाम उपायके धारे अमर निधानकों ॥ उत्तम कुलमें आयके ज्ञान त्रिकले साथकों, जोगसुख पायके जीनों चरणपद हाथकों ॥ १ ॥ करम त पाई केवल जोपाए, सेवो शिव श्रीनृप ॥ जिनं० मेरे० ॥ २ ॥ केई अमर आयके, नमन करें सुननावसें ॥ समवसरण रचनाकरी, चौमुख जिनदेखा बसें ॥ अतिशयगुण जिनधार, पर्षद बार प्रकारसें ॥ सोजित मधुर स्वरै, कहै धर्म विस्तारसें ॥ सहुविसुनके व्रतगुणपाए, सेवो शिव श्रीनृप ॥ जिन० ॥३॥ पारनही सके, सुरगुरू पिणकथनसें || अरिहंतपद आदरी अनंतसिध्वत नसें ॥ तीनवन प्रभुतणा रहा चैत्य अनादिसें ॥ श्रीवर शिवसुखपाय ध्या नगुण प्रसादसें ॥ संव चतुर्विध पत्र मोहनकर, सेवो शिव श्रीनृप ॥ जिनं ० ॥ ४ ॥ ॥ इति अरिहंतपद वर्णन स्तवनम् ॥ ॥
॥ * ॥ जीया चतुरः । ताल पंजाबी ॥ * ॥
॥ * ॥ जीया इकसुनवात, जिनपदकों तूं ध्यायरे ॥ जी० टेक ॥ अष्ट करमके वसमें परियो । त्रमियो नवसायर मांयरे ॥ जीया० ॥ १ ॥ पुन्यसंयो गे नरवपायो । मिलियो उत्तमकुल आयरे ॥ जीया० २ ॥ जैनधरम जिन