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मठाई महोचव श्री नंदीश्वर द्वीप पूजा.
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सकल | जिनमतिमा अभिधान ॥ ११ ॥ सुरगिरि सिखरै जिनतणो । जिन न्हवणोत्सव सार । करिकै नंदीश्वर जई। हरिगण विबुध नदार ॥ १२ ॥ अनुभव रसयुत नक्तिधर । हृदय सरोज मकार । इणपरि शाश्वत जिनतणी । करइ पूज अतिसार ॥ १३ ॥ पूरबदिशि अंजनगिरी | मंदिरगत जिनराज । अम विध पूजायें सदा । अरची जे हितकाज ॥ १४ ॥ प्रथम पूज जिनराजनी । विमलजले भरपूर | करिये न्हवण सदानवी । होइ सकल दुखदूर ॥ १५ ॥ ॥ * ॥ कुंदकिरण शशिकजलोरे देवा (ए चाल ) ॥ ॥ मिलिकरि - सकल सुरासुरारे वाला । निज सेवक सुरपासेंरे । कीरजलधि मागध थकी मेरे वाला | सिंधुनदी गंगासें रे ॥ १ ॥ बलि वरदाम सुतीर्थसेंरे वाला । वि मल सलिल प्रणावैरे । मणि कनकादि कलस जरीरे वाला । नषधि कुसुम मिलावेरे ॥ २ ॥ इंद्रादिक सहु सुरगणारे वाला । शाश्वत जिन न्हवरावे रे। विमल सलिल धाराकरी रे बाला । कुमति तापनें गमावै रे ॥ ३ ॥ इण परि जेनगते नवी रे वाला । न्हवणकरै जिनांगैरे । ते सुरवर सुख अनुभ बीरे वाला। लहै शिवपद मनरंगैरे ॥ ४ ॥ द्रव्यपूज करि सुरवरारे वाला । करs जिलिंद गुणगानारे । कुशल कुमुद विकसायबारे वाला । प्रभु शिव चंद्र समानारे ॥ ५ ॥ ( काव्य ) दुरितदाघ वना तप वारणं । सकल जाव वि काशन कारणं । जगति जव्य नवोदधि तारणं । जिनगणं स्त्रपयाम्य म लेऊ ॥ ६ ॥ ॐ जी श्री परमात्मनेभ्योऽनंतानंतज्ञानशक्तिभ्यः । प्रणत सकल सुरासुरेंद्र वितेंद्र वृंद विहितनक्तिभ्यः । कठिन कर्मशालमालोन्मूलनवा रणेभ्यो । जन्म मृत्यु निवारणकारणेभ्यो । नंदीश्वराष्टमीपगत । पूर्वाजनगिरी शिखरस्त | सिद्धायतन मंगनाय मानेभ्यः । श्रीरुषज्ञानन, चंद्रानन, वारिषेण बमाना, निधाना ष्टोत्तरैकशत शाश्वतजिनेंद्रेभ्यो । जलं ययामहे स्वाहा -इति प्रथम जलपूजा ॥ १ ॥ 11*11
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॥ दोषक ॥ बर सुगंध द्रव्यें करी । तरहु सिंधु संसार ॥ १ से जरी पुप्फबादल करी (ए चाल ) ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ अथ द्वितीय चंदन
पूजा ॥ ॥
॥ द्वितीय पूज जिनराजकी । करहु भक्ति नरसार ।
( राग जीममल्हार ) मेघव क्तिधरि जवीयजन पूज महा