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७३६ . रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. . अमृत वाणी बोलै । सुणतां. हरख अपारीरे वाला ॥ प्रा० ॥ ५॥ पूर्वचवद नण्या श्रुतसागर । लबधि अहाईस धारीरे वाला॥ द्रव्यानुजोगी चरणानुजोगी। करणजोगके धारी रे वाला ॥०॥६॥ गणताजुजोगरू धरमानुजोगी। जाणे आगमसारारे वाला । धर्मप्रवाहक एह कहीजै। सूरि मंत्रके धारी रे॥ वाला आ० ॥७॥ गणधारी गहनार धुरंधर । सारण बारण कारीरे।वाला। आ०॥ ज्ञान नजागर विद्या सागर । वारीजाऊंवार हजारीरे ॥वाला०॥०॥८॥ धरम विशाल दयाल पसाये। मुमति कहै जय कारीवाला॥आगाएसै गौतमस्वामी कहियोपूजोकर इकतारी।वाला। आ०॥९॥इति जी श्रीपरमात्मने स्वाहाः॥॥ ॥ost
॥॥अथ चोथी श्रीनवशाय पद पूजा ॥हा॥श्रीनवझाया वंदिये । प्रेमधरी मनरंग ॥ चोथे पदमें सोनता । पूजो धर नबरंग ॥१॥ नीलवरण ध्वज मुंदरू । धरलावो सुनथाल । अष्टद्र व्य लेईकरी। सेवो दीनदयाल ॥२॥ ढाल ॥ जिनगुणगानं श्रुतऽमृतं ॥ ए चाल|श्रीनवाया नयहरणं । नयहरणं रे देवा नयहरणं ॥श्री। परिहर विषय विकार प्रकारं । ए गुरु है असरण सरणं ॥श्री॥१॥ गुण पचवीस विराजत सुं दर। देखत सबको मनहरणं ॥ श्री। तेजपुंज रवि शशि समदीपत । मिथ्या तम दूरेकरणं॥श्री० ॥२॥ सूत्र अंर्थ दाता जगमां है। मुनि मानसमें जय करणं । सारण वायण चोयण करता। पमिचोयण वलि आचरणं ॥ श्री॥३॥ मादश अंग पढ्या श्रुतसागर। मुमती धर कुमती हरणं ॥श्री॥ अतिशय विद्याचूरण योगे। जिनसासन नन्नतिकरणं ॥श्री॥४॥धरम प्रनाविक है उपगारी । ऐसे गुरु तारण तरणं ॥श्री० ॥ तप जप आदिकनी खप करता जव्य सकलकुं निसतरणं ॥ श्री॥५॥ नवविध ब्रह्मचर्यके धारक । दशविधि . विनय सदाकरणं ॥श्री॥॥ माया ममता दूर निवारी । बादश दे तपधरणं श्री ॥ ६ ॥ शिष्य वरगळू शानदानदै । मूरखथी पंमित करणं ॥ श्री ॥ जग जीवनके हौ प्रतिपालक । तुमविन अवरन आचरणं ॥श्री ७ ॥ विनकारण जगमें नपगारी धन २ तुमरी आचरणं ॥ श्री० ॥ पंचपरमेष्टी महामंत्रको। इष्ट सदादिलमें धरणं ॥ श्री ॥ ८॥धरमः विशाल दयाल पसाये। सुसति