________________
पंचपरमेष्टी पूजा.
७३५ तुम सुखके जोगी। जोगीसर लयलानाहो ॥न सि०॥ शब्दरूप रस गंध करसकुँ । जीतनए मुनि जाना हो॥ज सि०॥४॥ अव्याबाध सुखके तुम रसिये। नव्य सकल सुख दानाहो॥न सि०॥घाति अघाति दूर करीनें । जोतमेंजोत समानाहो॥न सि० ॥५॥ पेंतालीसलख जोजन सिला । नऊलवरण कहानाहो ॥न सि० ॥ऊपर जोजन जागचोइसमें । सिधप्रनु ठहरानाहो ॥त्र सि०॥६॥ तिहां श्रीसिघ सदा जयवंता । परमगुरु परधा नाहो ॥ज सि०॥ अनंतगुणाकर ज्ञान दिवाकर । इनके गुण नितगानाहो न० सि०॥७॥लबधि रिधि सब सिधिके दाता । परम इष्ट सुखदानाहो
०सि०॥धरमविशाल दयाल पसायें। सुमति कहै बुधवानाहो ॥ सि०॥८॥नक्षी श्री सिधपरमात्मने अष्ट द्रव्यं यजामहेस्वाहा ॥ इति सिधपद पूजा॥ ॥
॥॥ ॥ ॥ अथ तीजी प्राचार्यपद पूजा॥॥ ॥ दूहा ॥ तीजेपदकू नितनमूं। आचारज गुणवान । गुणउत्तीस वीराज ता। जिनवरके परधान ॥१॥ प्रतिरूपादिक गुणकरी । राजेसर समान । जातिवंत कुलवंतहै । नहीविकथा नहीमांन ॥२॥ नव्य सकल• तारवा। देसाचो नपदेश । कुमति सदादूरे करै । सुमती पाले हमेश॥३॥झद्धि सिधि कारण पूजिये। पीलेरंग प्रधांन । गणधारक गुरु गछपती।युगपरधान सुजान।
॥ ढाल ॥ मलीजिनंद सुखकारी रेवाला॥ एचाल ॥आचारज सुखकारी रे वाला॥०॥पंचाचार विराजत जगमणि। सहस किरण अवतारी रे वाला॥आ०॥प्रतिरूपादिक गुण जसु लाजै । मोह माया परिहारीरे वाला ॥०॥१॥ रागद्वेषकुं दूर निवारै । सुमतारस भंडारीरे वाला ॥ प्रा० ॥ क्रोध मान माया नहि जिनके । विकथा दूर निवारीरे वाला ॥०॥२॥ तेजकरी सूरज सम सोनित । मिथ्यातमके वारीरे वाला॥०॥नमा अधिक जगमें जसुराजे । विषयविकार निवारीरे वाला ॥ आ० ॥३॥ हृदय गंभीर महायश निर्मल । रूपादिक मनुहारीरे वाला ॥०॥ देश जात कुल नत्तम जिनके । मोह्या सब नर नारीरे वाला॥०॥४॥ सुरवर नरवर सेव करतहै । जय २ तुम सुखकारीरे वाला ॥०॥ मीठी