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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.. ब० ॥२॥ अवरदेव सब काच कथीरा । तुमहो अमोलक हीराजी ॥ ब० ॥ राग प्रेष तुम पास नहीं हैं । वाईस परीसह धीराजी॥ब०॥३॥ तेरी सूरत की वलिहारी । क्याकहुं अजब अमीराजी॥ब० ॥कोड देवता हाजर रहता अगहुँतै वडवीराजी॥ब० ॥ ४ ॥ जगजीवन जगलोचन कहिये । तुमसम अवरन धीराजी॥ब० ॥ तेरे गुणको पारन पायो । सुरनर राय वजीराजी॥ ब० ॥ ५ ॥बारै गुणो प्रनू ऊपर सोहै । वृत अशोक नदाराजी ॥ ब० ॥ तीनउत्र नामंगल पूछे। ध्वजा फरक रही साराजी ॥ब०॥६॥ पृथ्वीपीठ सिंहासन ऊपर । राजत हो बडवीराजी ॥ब० ॥ पान फूल करके बहु सो जत । राजतहो गुणपूराजी ॥ब० ॥७॥ सहस जोजननो इंद्रध्वज प्रनु । आगे चालत सारा जी॥ब० ॥ महागोप महामाहण कहिये। निर्यामक सत्थ वाराजी॥ब०॥८॥ ऐसे अरिहंत पदकी महिमा। सुणियो तुम सब प्यारा जी॥ब०॥ तीन लोकमें इनका फंडा। पूजतहै इकताराजी॥ब० ॥९॥ अष्ट द्रव्यसें पूजा करतां । सदा हुवै जयकाराजी ॥ ब॥ धर्म विशाल दयाल पसाय । सुमति कहै गुणसाराजी ॥ ब० ॥१०॥ भी परमात्मने पंचपरमे ष्टी महामंत्र राजाय अरिहंत पदे अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ इति अरिहंत पद पूजा ॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ दूजी सिहपूजा ॥ ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ दूजी पूजा सिद्धकी। करो नविक गुणवंत । धजा चढावो जावसुं। लालवरण मतिवंत ॥१॥ गुण इकतीस विराजता । तीनलोक सिरत्र । अनंतचतुष्टय धारता। जगजीवन जगमित्र ॥ २॥ ॥१॥
॥ ढाल ॥ नविपनरमपदगुणगानाहो॥०॥ एचाल ॥लविसिद्ध पदके गुणगानाहो ॥न सिं०॥ पनरेनेदे सिद्ध विराजै । जवितुम चितमें लानाहो ॥ज सि०॥ जिना जिन तीरथा तीरथ कहिये । अन्य सलिंग कहानाहो ॥ ॥न सि॥१॥ स्त्री पुरुषादिक लिंगें जायै । कृत्य नपुंसक गानाहो ॥ ॥०॥ प्रत्येकबुद्ध नें महसंबुद्धा । बुद्धबोधित सुप्रमानाहो॥ज सि०२॥ एक अनेक और एकसमयें। गुरुमुखथी सुच पानाहो॥न सि०॥ अष्ट सिधि नव निधिके दाता। तुमहो देव निधानाहो ॥न सि०॥३॥ सादी अनंत