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परममंगल श्री दादाजीके काव्य सर्वईया ८२३ ॥ * ॥ परममंगल श्री दादाजीके काव्य सवईया॥॥ :
॥ॐ॥दाशानुदाशा इव सर्वदेवाः । यदीय पादाब्ज तले मुठति । मरु स्थली कल्पतरुः सजीया। ज्जुगप्रधानो जिनदत्तसूरिः ॥ १ ॥॥ ॥
॥॥ चिंतामणिः कल्पतर्खराको । कुर्वन्ति जव्याः किमु कामगव्या। प्रसीदतःश्री जिनदत्त सूरेः। सर्वेपदा हस्ति पदे प्रविष्टाः ॥ १ ॥ * ॥
॥ॐ॥नोयोगी न च योगिनी न च नराधीशस्य नो शाकिनी । नो वेत्ताल पिशाच राक्षसगणाः नो रोग शोगो नयं । नो मारी नच विग्रहः प्रत्र तयः प्रीत्या प्रणत्युच्चकैः । यस्ते श्री जिनदत्तसूरि गुरवो नामाकरं ध्यायति ॥
॥॥अथ सवईया लि०॥8॥ ॥ ॥ बावन्न वीर कीयै अप्पणे वस, चौसठ जोगण पाय लगाई। माइण शाइण व्यन्तर खेचर नूतरु प्रेत पिशाच पुलाई । वीज तमक कम क नटक्क अटक्क रहैजु खटक्क न काई। कहै ध्रमसीह लंघे कुणलीह दीय जिनदत्त की एक मुहाई ॥ १ ॥ इति ॥ * ॥ ॥ ॥ - #॥राजै थुन गैर गैर, ऐसो देवनही और, दादौ दादौ नामसें, ज गत्र जस्स गायो है । आपणेही लाव आय, पूजै लक्खलोक पाय, प्यासनकुं रांन मांकि पांणी आन पायो है । वाट घाट शत्रु दाट, हाट पुर पाटणमें दे ह गेह नेहसूं, कुशल वरतायो है । धर्मसीह ध्यान धरे, सेवकां कुशल करे साचो श्री कुशल गुरु नामयुं कहायो है ॥ १ ॥ * ॥
* ॥ कुशल अंग नारंग कुशल वणिजै व्यापारे । कुशल देव देहरै। कुशल घन राजवारे । पुन्य पसायें कुशल कुशल श्रीसंघ नणी जे । वाहण आवै कुशल कुशल घर घर गाईजै । श्री जिनचंद्र सूरि पुहपट्टधर । नाम मंत्र आरति टनै । श्रीजिनकुशल सूरि पाय पूजतां नवनिधान लक्ष्मी मिले ॥१॥
॥*॥ कुशल वमो संसार । कुशल सऊन घर चाहै । कुशलै मश्गल माल । लबिघर कुशल आवै । कुशले घन वरसंत । कुशल धन धन्न रुवन्नो। कुशलै घोमा थट्ट । कुशल पहिरीय सुवन्नो । ए रसो नाम सदगुरु तणो । कुशल जगरलीया मणो । नट्टारक श्री जिनकुशल सूरि नाम ग्रहणे करी। घरघर होत वधावणो॥२॥ॐ ॥ ॥8॥ ॥