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रत्नसागर. ७ वेर मंत्रके मंगल पूजामें ( तथा ) कलसकै बांधे। आपके ( तथा) स्नात्रियांक कांकणमोरा मोली इसी मंत्रसें मंत्रके बांधे ॥ इति कांकण मोरा मोली मंत्रः॥॥
॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥क्षी अहं चूर्जुवः स्वधायस्वाहाः ॥ इस मंत्रसें फूल बास चूर्ण मंत्री नूमी पवित्रकरै जल केशर पुष्पसें आबोटनकरै ॥ पीछे ॥ नगवं तकी स्नात्रपूजा कियेवाद जलस्थानकपर आयके मंत्र पढके अष्टद्रव्यसें पूजनकरै अथ जलपूजनमंत्रः॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ .॥॥ीरोदधि स्वयंनूश्च । सरे पद्म महाद्रहे । शीता शीतोदका कुमे। जलस्मिन् संनिधिं कुरु ॥१॥ गंगे चलमुने चेव । गोदावरी सरस्वती । का बेरी नर्मदासिंधोः । जलेस्मिन् संनिधिं कुरु ॥२॥
॥ ॥ ॥ ॥ क्षी अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षणी अमृतं श्रावय २ में से । क्ली क्ली ब्लुं ब्लू. माँ जी द्राँ द्री द्रावय २शी जलदेवी देवान अत्राग २ स्वाहा ॥ इस मंत्रसें अंकुश मुद्रासें जल निकालके धोवा सुच किया हुवा कलस नरै । पीछे इस मंत्रसें ३बेर कूर्म मुद्रासें जलस्थापन करै ॥ ॥ॐ॥ ॥॥ आंझी कों जलदेवी पूजावलिंगृाह २ स्वाहा ॥ॐ॥
नक्षी क्ली ब्लु कहता हुवा जलं समर्पयामि चंदनं पुष्पं धूपं . दीपं अक्तं नैवद्यं फलं, वस्त्रं समर्पयामि ॥ इसी तरै अष्टद्रव्य चढावै जल कलस पूजाकरे, मुख परनालेर धरके लाल हरा वस्त्र मोलीसें बांधे। फेर सधवस्त्रियांके मस्तक पर देके वाजागाजा बमा महो-जल लेनेकों आया था नसी मुजब सर्व संघ बसे महोदवसें अगाडी पंचामृतधारा कोरा बलबा कुल देवता हुवा मंदिरजीमें आवै ॥ नगवानके जीमणीदिशितरफ कलस थापनकरै । अधिष्टायक खेत्रपालजीकी पूजा करावै । अष्टद्रव्यचढावै ॥अथ क्षेत्रपाल मंत्रः॥ * ॥
॥ ॥ ॥ * ॥ नक्षी का ही हुँ हैं दों का क्षेत्रपालायनमः स्वाहाः ॥ गंधा कृत जल पुष्प तैलसिंदूरैः दीप धूपोथै पूजयामि ॥ निमकतारण आरती प्रमुखकरके चैत्यवंदन संपूर्ण करै याचकांनंदानदेवै ॥ ॥ ॥॥ ॥ॐ॥इति जलयात्रा संखेप विधिः॥॥