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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
॥ ॥ पूर्व मुख सावनं ॥ ए देशी ॥ * ॥
॥ शुद्ध निज दर्शनें, करिय गुणकर्षना । जिनचरण सेवना विविधकारी ॥ यो विविधकारी ॥ ए ० ॥ एक निजधर्ममय परमलय जीनता। दीनता सकल तज रज निवारी || हे ई० ॥ २० ॥ १ ॥ आत्मगुण अंतरातमप णे वृत्तिता । तजिय वहिरात्मजिन प्राण धारी ॥ हे ० ॥ ० ॥ २॥ शुद्ध सम्यक्तगुण संपदा निज नही । सहीय शुभ धर्म रुचि जास सारी ॥ हे अ० ज० ॥ ३ ॥ विविधमणि रत्ननी जोति ऊगमग जगे, चंद्रिका जास नासित करारी ॥ हे प्र० प्रा० ॥ ४ ॥ प्रवर कुल शुद्ध राजन्य प्रमुखें मुदा ॥ प्रयुकर बंध तर जव सुधारी ॥ हे अ० ज० ॥ गर्भ अवतार निज मात नदरें लहे । वाल शुभ लग्न शुभ योग चारी ॥ हे ० ॥ शु० ॥ ५ ॥ || || TET || ||
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॥ शुभदिन शुभ मुहुरत घमी । शुन नच्च ग्रह चार ॥ देवलोक चवि प्रभु लहे । मातु नदर अवतार ॥ १ ॥ सुंदरवर प्रासाद महि, मध्यनिशा जिनमात स्वम देख सुख सेजमें। जाग्रत अति हरखांत ॥ २ ॥
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॥ राग काफी ॥ जिनजी जो नवि प्यारा । या तें आनंद अधिक प्र यारा ॥ ज० ॥ १ ॥ सुख सेज सूती जिन माता । देखे सुपना मनत्राता ॥ चित्त हरखित हुय ति वारा ॥ जि० ॥ २ ॥ शुचि गज वृष सिंह मनुहार, लक्ष्मी दाम शशी दिनकार ॥ धज कुंत्र पदमसर सारा ॥ जि० ॥ ३ ॥ वर कीर समुद्र विमान । रयणोच्चय मेरुसमान || निर्धूम पावक सुखकारा || जि ॥ ४ ॥ शिवधान्य मंगल श्रियकारी । जाणी अर्थ हृदय क्रमधारी । शुभसूचक पुएय संजारा ॥ जि० ॥ ५ ॥ सुंदर वर सखियन संगें । करिधर्म जागरिकारंगें, निशि शेष गई तिणवारा ॥ जि० ॥ ६ ॥ इहां एक पुष्पमाला चढावे ॥
॥ * ॥ दोहा ॥ * ॥
परम पुरुष परमातमा, जावी भगवन मास | प्रवचन प्रगटीकरण प्रभु पुण्य तणे सुप्रकाश ॥ १ ॥
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॥ ॐ ॥
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॥ पूजा सतर प्रकारी ॥ ए देशी ॥ * ॥
॥ आज आनंद वधाई, नई त्रिभुवनमें। चौद सुपन सूचित गुहा जेहना,