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नवपदके (९ ) चै० (९ ) स्त० ( ९ ) थुई.
॥ * ॥ अथ दर्शनपद नमस्कार लि० ॥ ॥
॥ * ॥ हुय पुग्गल परियदृ । ढ परमित संसार | गंठिनेद तब क रिल है । सब गुण आधार ॥ १ ॥ कायक बेदक शशि संख । नवशम पण वार । बिनाजेण चारित्र नाए । नही हुवै शिव दातार ॥ २ ॥ श्रीसुदे व गुरु धर्मनी । रुचि लवन अभिराम । दरशनकुं गणि हीर धर्म । ग्रह निश करत प्रणांम ॥ इति दर्शनपद नमस्कारः ॥ ॥
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॥ * ॥ अथ दर्शनपद स्तवन लि० ॥
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॥ ॥ रामचंद्र बाग आंबो मोह रह्योरी (ए चाल ) ॥ ॥ देव श्रीजिनराज । गुरुते साधु जल्योरी । धर्म जिनेश्वर प्रोक्त । लक्षण बोधि तोरी ॥ १ ॥ बोधलानके काज । सप्तम नरक जलोरी । तेण बिना सुर लोक । तातें अधिक बुरोरी ॥ २ ॥ मिथ्या तापे तप्त । बोधही बांहलहेरी । उपशम ख्यायक वेद । ईश्वर तीन कहेरी ॥ ३ ॥ नव सायर हे अपार ।
प्रस्ताव कोरी । जसु जाने ते होय । गोसपद मात्र खरोरी ॥ ४ ॥ यदनावें प्रमाण | नाण चारित नलारी । बोध धर्ममें जीव । लाने कु शल कलारी ॥ ५ ॥ इति दर्शनपद स्तवनं ॥ ६॥ ॥ * ॥
॥ * ॥ अथ दर्शन पदस्तुतिः ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ जिनपन्नत्त तत्व सुधासरधै समकित गुण नज वालै जी । नेद बेद करि प्रतम निरखी पशु टाली सुर पावै जी । प्रत्या ख्यानें समतुल्य जाप्यो गणधर अरिहंत सूराजी । ए दरशण पद नित नित बंदो जवसागरको तीरा जी ॥ इति दर्शनपद स्तुति ॥ ६ ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ ग्यानपद नमस्कार लि० ॥ * ॥
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॥ * ॥ विप्रादिक रस राम वन्हि । मितं श्रादम नाण । नाव मिला पसें जिन जनित । सुयं बीश प्रमाण ॥ १ ॥ नवगुण पडव नहि दोय | मण लोचन नांण । लोकालोक सुरूप जाण । इक केवल जाण ॥ २ ॥ नानावरणी नासथीए । चेतन नाण प्रकाश । सप्तम पदमें हीर धर्म । नित चाहत अवकाश ॥ इति ज्ञानपद चैत्यबंदनं ॥ *॥
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