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रत्नसागर. ॥ॐ॥अथ नपाध्याय पद स्तुतिः॥ * ॥ ॥ * ॥ अंग इग्यारै चनदै पूरब गुण पचवीसना धारी जी। सूत्र अस्थधर पाठक कहियै जोग समाधि विचारी जी । तप गुण सूरा आगमपूरा नय निदपै तारी जी । मुनि गुणधारी बुध विस्तारी पाठक पूजो अविकारी जी॥ ॥ इति उपाध्याय स्तुति ॥४॥8॥
॥ ॥ अथ पंचमपद नमस्कारः॥॥.. ॥ॐ॥दंशण नाण चरित्त करी। वर शिवपद गामी । धर्म शुक्लसु चि चक्रसें । आदिम खय कामी ॥ १ ॥ गुण पमत्त अपमत्ततें । जये अंतरजामी । मानस इंदिय दमनन्त । शम दम अनिरामी॥२॥चारुति घन गुण गण जरयो ए। पंचम पद मुनिराज । तत्पद पंकज लमतहै हीर धर्मके काज ॥ ३॥ इति साधुपद चैत्यवंदनं ॥५॥ ॥
॥ ॥ अथ साधु पद स्तवन लि०॥॥ ॥ॐ ॥ मालन मालन मति कहो ( एचाल) निकषाया जगजन कहै। धारे चरगति बसनसें रोसहो (मुनिंदजी) रागहीन नय तुं करै । (साहि बा) शिव रमणीसें हेतहो ( मुनिंदजी)॥१॥सर्वप्रमादतजी रहै (सा० )
पूरब कोमहो (मु०) शत सोगम आगम करै (सा० ) लघुकाले गुण आदिहो मु०॥२॥स्त्यानर्षि निद्रानदै सा। पामें कर्म निकंद हो(मु०) प्रचला निद्रामें रही (सा० )। बारम गुणनो बास हो (मु०)॥३॥ स्थिति रस घात प्रमुख करै (सा०) जो गुण संख्या तीत हो (मु०) तो पिण तिण जगमें लही (सा०) त्रिक धन गुणनी ख्यात हो (मु०)॥४॥ रयण त्रयसें शिव पथें (सा० ) साधन परवर जीव हो (मु०)। साधु हुवई तमु धर्ममें (सा.) कुशल भवतु जगती वहो (मु०)॥५॥ इति ॥५॥
॥ ॥ अथ साधू पद स्तुतिः ॥ ४ ॥ ॥ॐ ॥ सुमति गुपतिकर संजम पालै दोष बयालीश टालैजी। षटकाया गोकल रुख वालै नवबिध ब्रह्मव्रत पालैजी । पंच महाबत सूधा पालै धर्म शुक्ल नजवालै जी ॥ कृपक श्रेणिकरि कर्म खपावे दमपद शुण नपजावे जी ॥ इति साधू पदस्तुति ॥ ५ ॥ ॥ * ॥
अथ साथ मजम पात दीपावेजी पत्र खपाने