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नवपदके (९) चै० (९) स्त०(९) थुई. ३११ लीनो। सुत्र अरथै आगम पीनोहो (ग) आचारिज पद एहवो । धरी जीव कुशलता सेवोहो (ग)॥५॥ इति आचार्य स्त० ॥३॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ अथ आचार्यपद स्तुतिः॥॥ ॥ * ॥ पंचाचारकुं पालै नजवालै दोष रहित गुणधारी जी । गुण उत्तीसे आगमधारी प्रादश अंग विचारी जी । प्रबल सबल घनमोह हरणकुं अनिल समो गुणवाणी जी । कमा सहत जे संयम पालै आचारज गुणध्यानीजी ॥ इति आचार्य पद स्तुति ॥३॥
॥* ॥ अथ चतुर्थ पद नमस्कारः॥ * ॥ ॥ ॥धन धन श्री नवझाय राय । सठता घन नंजन। जिनवर दिसत वाल संग । कर कृत जन रंजन ॥ १॥ गुणवण नंजण मण गयंद । सुय शृणि कियगंजण । कुणालंध लोय लोयणें । जत्थय सुय मंजण ॥२॥ महा प्राणमें जिन लह्यो ए। आगमसें पद तुर्य । तिन अहि निश हीर । धर्म । बंदे पाठक वर्य ॥३॥इति नपाध्याय चैत्य० ॥४॥ ॥
॥॥अथ उपाध्याय पद स्तवन लि०॥ * ॥ ॥॥ शांवलिया अलगा रहोनें। (एचाल) हुयनें ३ दूरी हुयनें । चेतन ना सठने ( दूरीहोयनें) तुं मुफपास क्युं आवै ( दू० ) तुमने कुण वतलावे । (दू० आंकणी) तो संगै निज पंचेंद्रीनो । रचना चरम जुलाणो । नाणाबरणी खय नपशमसे । जावेंद्री मंमाणो ( दू० ) ॥१॥ द्रव्य ते परजाप्तेंकीना । जाति नाम व्यपदेश । एवंतो गो तुरग गजादिक किण कर्मे उपदेश (दू० )॥२॥ इत्यादिक बहु मुझकुं शंका। तेरे संगे ला गी। नीलवर्ण की शमतासेती । मेंनयो तोसुं रागी (दू०)॥३॥ नप क हीयें हणीयो नवियानो। अधियां लानत आय । आधीनां मन पीमाना में । मायो येन बिलाय (दू०)॥४॥आधिक्य स्मरीयै बर आगम । सुत्र से ते नवज्ञाय । तत्सेवातें हणि सठताकुं । चेतन कुशलता पाय ( दू० ) ॥५॥ इति चतुर्थ पद स्तवनम् ॥॥