________________
सुमति ममणजीकृत पांचज्ञान पूजा. ७७१ बोधबीज निरमलहुवे । प्रगटै सुक्ख अपार ॥१॥ नवल नगी. सारिखो।। ज्ञानवको संसार । सुरनर पूजे भावसुं । महियल झांननदार ॥ २ ॥ (ढाल)॥निरमल हुय जजलै अनुप्यारा । सबसंसार० (ए चाल)॥४॥
॥अवधिज्ञानको पूजनकरले। ज्यु पावै नवपार सलूणा॥०॥झानबमो सुखदैन जगतमें । नपगारी सिरदार सलूणा ॥१०॥१॥भेद असंखकहै जिनवरजी । मूलनेद पद सार ॥ स० ॥ वट्टमान हीयमान वखांणें । सूत्रे श्री गणधार ॥ स० ॥ २ ॥ सुर नर तिरि सहु अवधि प्रमाणे । देखै द्रव्य जदार ॥ स०॥ अवधि सहित जिनवर सहुआवै । थाये जग भरतार ।। स०॥३॥ ज्ञान विना नर मूढ कहावै । ढोरसमो अवतार ॥ स० ॥ झा नी दीपक सम जगमां है । पूजे सहु नर नार ॥ स० ॥४॥ ज्ञानतणीं महिमा जग मां है। दिन २ अधिकीसार । स० ॥ मूलमंत्र जग वशकर बाको। एहीज परम आधार ॥ स०॥५॥ ज्ञाननीपूजा अहनिशि करिये । लीजै बंबित सार ॥ स ॥झानने वंदी बोध नपावो । करम कलंक निवार ॥स०॥ ६॥ इत्यादिक महिमा नविसुणकै । पूजो अवधि नदार ॥ स०॥ सुमतिकहै नवि नाव धरीनें । सेवो शान अपार । सलूणा ॥ ७॥ उक्षी श्रीपरमात्म० । श्रीअवधिज्ञान धारकेभ्यः । धूपं यजामहे स्वाहा ॥३॥
॥ ॥ अथ (४)मनपर्यवज्ञान पुष्पपूजा ॥१॥ ..॥ (दूहा ) ॥ ॥ केतकी दमणो मालती । अवर गुलाब सु गंध। जावधरी पूजन करो। हरै कुमति पुरगंध ॥१॥ मनपर्यवं पूजाक रो। विवध कुशम मनरंग । माहिकै परमल चिहुं दिशै । पामें शुजश अ जंग ॥ ७॥ (ढाल ) ॥ सेत्रंजानोवासीप्यारो लागै० से० ॥ (एचाल )।
जिनजीरो नसुहावै । म्हाराराजिंदा। (जिनजीरो ज्ञान०)जिन जीरो ज्ञान अनंतो सोहै । कहतां पारन आवै । म्हाराराजिंदा ॥ जि० ॥ ॥ १॥ सन्नी नर मनपरयव जाणे। तेमुनि झांन कहावै ॥म्हारा० ॥ जिन विपुलमतीने झनुमति कहियै । ए ऽयनेद लहावै ॥ म्हारा जि० ॥२॥ अंगुलअढाए ऊणो देखे । तेरुजु नांम धरावै ॥ म्हारा० ॥ जि० ॥ ३ ॥ म .. नगत भाव सकल ए नाखै । ते चोथो मननावै ॥ म्हां० जि० ॥ एह