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रत्नसागर.
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॥ अथ विधि ॥ ॥
॥ ॥ एकेक कल्याणक की एकेक माला गुणनेंसें दैटसे माला होय (जो ) नव्यजीव शुरू चित्तसें गुरोंगे ( सो ) अल्प जवमें अनंत सुखकों प्राप्त होंगे इति मार्गशीर्ष माश पर्वाधिकारः ॥ ॥
॥ * ॥थ पोष मास मध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ ॥ ॥ पोष महिनेंमें, मिती पोषबद १० ( सो ) पोष दसमी नामसे प प्रसिद्ध है । इस दिन श्रीपार्श्वनाथ स्वामीका जन्म कल्याणक है । इसी से यह दिन श्री संघ में परम आनंदकारी है । इस दिन श्रीपार्श्वनाथ स्वा मीको अधिकार सुर्णे । एकाशणादिकको पच्चक्खाण करे | जहां श्री पार्श्व नाथ स्वामी नामसँ तीर्थ प्रसिद्ध होय । नहां यात्रा करणें को जावै । कदास यात्रा करने को न जाय सकै ( तो ) जहां श्रीपार्श्वनाथ स्वामी की स्थापना होय । जहां महोचव संयुक्त दर्शण करने को जावै । जलयात्रा दिक महोaa करके प्रष्टोत्तरी स्नात्र करावे ( अथवा ) पंचकल्याणक जी की (वा) सतर नेदी पूजा करावै । रात्री जागरण करावै । तोरण बांधै । गीत गान नाटकादिकसे अनेक तरे के नव करे (और) जन्म कल्याण कादिक ॥ पाश जिनेसर जगति जोए० ॥ वाणी ब्रह्मा बादनी ० ॥ इत्या दिक पार्श्वनाथ स्वामीके गुण गर्भित स्तवन पढै । ( वा ) सुणें । इसी तेरे इस पर्व को सेवन करनें सें । आधि व्याधि सोग संताप सर्ब दूर होंगे । अनेक तरैरुद्धि वृद्धि सुख सौभाग्यकों प्राप्त होंगे ॥ ॥
॥ * ॥ थ जन्म कल्याणकको स्तवन लि० ॥ ॥ ॥ * ॥ श्रीचंद्रा प्रनु जिनवर साहब सुणियो० ( इस चाजमें) । पोश दसम दिन पारश प्रजुको । जन्म जयो सुखदाई । ( में वारी जावुं ० ) । काशी देश बणारसी नगरी । प्रस्वशेन कुल आई । ( में० ) वामांतर अ वतार लियो है ॥ सहु जीवन गुण दाई ॥ ( में ) १ ॥ एक सहस डोत्तर लक्षण । अनुपम रूप सुहाई । (में० ) । नील वरण छवि तीन ग्यानयुत । पार्श्व प्रतू बरदाई । ( में वा० । २ । पो० ) । नरक जीव पि ए कि सुख पावत। दिश कुमरी मिलाई । ( ० ) सूतिका कर्म क
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