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सिवचक्र मंगल पूजाविधिः.
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बेर पढता हुवा स्नान करे (पीछे) ॥ ॐ की मा को नमः ॥ सातवेर इस मंत्र व शुद्ध करके पहरे (पीछे) प्री को अते नमः ॥ ( इस मंत्रसे) सातवेर गुरूपासे केशर मंत्रायके तिलक करे (पीछे) नँ शी अवतर २ । सोमे २ | कुरु २ । वल्गु २ । सुमसे । सोमणसे । महु म हुरे । तँ कवली कः कः स्वाहाः ॥ ( इस मंत्र ) मोली मेंढल मरोमा फी मंत्रायके हाथ बांधे ॥ (और) जब मंगलजीके चारुं तरफ मोली मेंढल बांधे। सोनी इसी मंत्र मंत्रके बांधे ॥ इसीतरे अपना अँग शुद्ध करके स्त्रात्रिया गुरूके सन्मुख हाथ जोमके बैठे ॥ ( जब गुरू) पर मेष्टी ० स्तोत्र पढके अंगरक्षा करें ॥ अंगरक्ता स्तोत्रः ॥ ॐ परमेष्टी नमस्कारं सारं नवपदात्मकं । श्रात्मरक्षा करवज्र । पंजरानं स्मराम्यहं ॥ १ ॥ ॐ णमो अरिहंताणं ॥ शिरस्कं शिरसिस्थितं ॥ णमो सवसिद्धाणं । मुखे मुखपटंबरं ॥ २ ॥ णमो आयरियाणं । अंगरक्षा तिशायिनी । तँ णमो नवाया। आयुधं हस्तयो दृढं ॥ ३ ॥ णमो लोए सबसाहूणं । मोच के पादयो । एसो पंचनमुक्कारो ॥ शिलावज्रमयीतले ॥ ४ ॥ सब पाव पणासणी । वप्रोवज्रमयोबहिः । मंगलाच सवेसिं । खादिरांगार खातिका ॥ ५ ॥ स्वाहांतंचपदं ज्ञेयं । पढमं हवमंगलं । वप्रो परिवज्रमयं । पिधानं देहरणे ॥ ६ ॥ महाप्रनावा रक्षेयं । कुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्टिपदोद्भूता कथिता पूर्वसूरिभिः ॥ ७ ॥ यश्चैवं कुरुते रक्षां । परमेष्टि पदैसदा ॥ तस्यनस्याद्भयंव्याधि । राधिश्वापि कदाचिनः ॥ ८ ॥ ॥ इति श्रात्म रक्षा वज्रपिंजर स्तोत्रं ॥ ॥ यह स्तोत्र तीनवार गुणके आत्मरक्षा करे || (पीछे) तीन वेर नवकार मंत्र मंत्रके चोटीके गांठ देवे ॥ ( तथा ) तीन नवकार गुणके सर्व स्नात्रियां के कानांमें फुंक देवे ॥ ( इतनी विधीतो) हरकोई पूजा प्रतिष्टा मंगलादिकमें स्नात्रियांकों प्रथम अवश्य करणी करा णी चहियै ॥ ( पीछे मंदरजीमें अधिष्टायक देव देवी जो होय । तन सर्वकी पूजा करावे । प्रष्ट द्रव्य चढावे ॥ ( पीछे ) चंपेलीका तेजमें, हिं गजू (वा) सिंदूर मिलाके क्षेत्रपालजीकी पूजा करे। चांदीका वरग (वा) मालीपन्नासें अंग रचना करे । अत्तर चढावे । फूल, धूप, दीप नेवेद्य
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