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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह
फल, जल, रोकनाणो, इत्यादि सर्व द्रव्य ( क्षेत्रपालायनमः ) ऐसा वोल ता हुवा चढावे ॥ ( पीछे ) मंगलजीके दहिर्णेपासें १० दश दिग्पा लके पट्टेकी थापना करे । एकेक दिग्पालकी पूजा पढके जल चंदनादि सर्व द्रव्य, नागरवेल के पानसुद्धा चढाता रहे । दशुं दिग्पालकी पूजा हुए पीछे | ऊपर कसुंबल वस्त्र वांधे । आगे सर्ब द्रव्य चढावे । दीपक करे ॥ ( पीछे ) वामपासे नवग्रहका पट्टकी थापना करके पूर्वोक्त प्रकार पूजा करे । (पीछे) सर्व नात्रयां १८ स्तुतीसें देव वंदन करावे ॥ ( इहां ) १० दिग्पाल, नवग्रहकी पूजाका मंत्र (तथा) देव वंदनकी विधि विस्तारके जयसेती न लिखी है (सो) पूर्वेशांति पूजामें लिख आए हैं (उसी मुजब ) • सर्व विधि करावे (पीछे) मंगलजीकी प्रतिष्टा करे ॥
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॥ ॐ ॥ अथ मंगल प्रतिष्टा विधि ॥ ॥
॥ * ॥ प्रथम दोनुंपासे मोली सुत्रकी वत्ती जगाके घृतका दीपक करे | इन दोनुं दीपककों चार पहर अखं रक्खे । (पीछे) सोने, चांदी आदिका कलश में बोट उत्तम जल जरके सोनावाणी करे। हाथमें कल श लेके । ७ सात नवकार गुणें ॥झी जीरावला पार्श्वनाथ रक्षां कुरु २ स्वाहा ।। इस मंत्र ७ वार जलकों मंत्रके । मंगलजीके चारुं तरफ धारा देवे | ऊपर जरा बांटा देके पवित्र करे । धूप खेवै (पीछे) नवतारी मोली सुत्रका साठा तीन प्रांटा मंगलजी के बाहर कर देवे । पूर्वोक्त मंत्रसें. मंत्रके मोली (तथा) मेंढल मरोमा फली चारुं तरफ वांधे ॥ ( पीछे ) के शरकी कटोरी हाथमें लेके (शी श्री अहते नमः ) इस मंत्र मंत्र के मंगलके ऊपर केशरका नींटा देवे । ( ऊपर ) चावलको साथियो करे । टीकी देवे । मंगलके अगामी चावलको साथियो ( वा ) नंद्यावर्त्त करके ऊपर नालेर रुपियो नेट धरे ॥ ( पीछे ) केशर, चंदन, कुंकम, लेकर मंगल जीके चारुं तरफ तीन रेखा लेखन करै ॥ ( पीछे ) वाशद्देप, पुष्प, हाथ में लेके ( नूरसी नूतधात्री विश्वाधारैनमः ॥ ) इस मंत्रसें सातवेर मंत्रके मंगल भूमि तथा पीठकी पूजा करे ॥ फेर, प्राचार्य गुरू वाशक्षेप हाथमें लेके ( जी श्री र्हपीठायनम ) इस मंत्रसें ७ वेर मंत्र के मंगल पीठकी
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