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रत्नसागर.
॥ सदा० ॥ अब इतनी किरपा करो । नरक नहीं जानं ॥ अब जव जव मांहीं देव | जिनेसरपानं जि० ॥ यें मन वच काया करी । चरण चित्त जानं । ए दया धरम हितकार । सदा में चानं ॥ सदा० ॥ ए चौरा शीके मांहे । फेर नहीं मानं । युं अरज करे जिनदाश । कीरत ए गाईरे ॥ कीरत • प्रब० ॥ ४ ॥ * ॥
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॥ * ॥ सुमति कुमति लावणी ॥ # ॥
॥ ॥ हां रे तुं कुमति कलेस नार । लगी क्युं केमे || लगी० ॥ च ल सरक खमी रहे दूर । तुजे कुण बेने (ए प्रकणी) हां रे तुं सुमतिको नरमायो । मुजे क्युं बोमी ॥ मुजे० ॥ मेरी सदा शाश्वती प्रीत | बिनकमें तोमी ॥ तु विन सुनी मेरी सेज । कहुं करजोमी ॥ कहुं० ॥ उठ चलो हमारे संग । सुखें रहो पहोगी । युं झुर झूर कुमति प्रांसु । आंखसें रेमे ।
ख० ॥ चल० ॥ १ ॥ हां रे तेरी नरक निगोदकी सेज । सेती में रू ठ्यो सेति ॥ पकड्यो साचो जिनराज । संग तेरो बुड्यो । तेरी मूरख मानें बात । हैयाको फूट्यो । हैया ॥ में सहेज हुवो हुँ दूर तार तेरो तूट्यो । तुं कर दूरसें बात । आाव मत नेमे ॥ प्रा० ॥ चल० ॥ २ ॥ मेरी अनंतकालकी प्रीत । पलक नहींपाली | पलक० ॥ सुमतिके लागो संग मुजे क्यों टाली । तुं सुमतिको शिरदार । सुनावे गाली ॥ सु० ॥ तेरी ह म दोनुं हे नार | गोरी र काली । तुं हमकूं ठेले दूर । सुमतिकुं तेरे ॥ सुम० ॥ चल० ॥ ३ ॥ अब कुमतिको ललचायो । रती नहीं रुगियो । रती० ॥ सुन कर सूत्रकी शीख । साच होय लगियो । चेतन कुमतिके सेज । दूरसूं नगियो | दूर० ॥ जिनराज बचनको ग्यान । हैयेमें जगीयो । जिन दाश कुमति तुं बात । खोटी मत खेमे ॥ खो० ॥ चल० ॥ ४ ॥ ॥ ॥
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॥ * ॥ तुम तजो जगतका ख्याल । इसका गानां ॥ इस० ॥ तेरी ल्प ऊमर खुट जाय । नरक नठ जानां । तें दिना चार जुग बीच। लिया हे वासा ॥ लिया• ॥ तेरे शिरपर बेठा काल । करेहे हासा । में बोलूं सा 'ची बात । झूठ नही मासा ॥ ० ॥ तूं सूता हे कुण निंद । किसी कर