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श्रीनेमि० मगसीपार्श्वजिन लावणी. ४८५ आसा ॥ अब सेव देव जिनराज । खलकमें खासा ॥ खल० ॥ तेरा जो बन पतंगका रंग । कुछ सब आसा. ॥ अब हीये धरो मेरी सीख । समजरे दिवाना ॥ सम०॥ तु०॥१॥ अब बुरी नली सब बात । मोन कर रीजें मोन ॥ ए मुख मीग संसार । नेद नही दीजें ॥ कर वीतराग विशवास । हिये धर लीजें ॥हिये॥ पण नीच नारका संग । माहे मत नीजें । अ ब सात विसनको संग । प्रीत मत कीजे ॥ प्रीत०॥ तोहे घरगति दे पहों चाय । तेरो तन गजे ॥तुं सुख सुखका सिरदार । रंक नही राना ॥ रंक० तुम० ॥२॥तुं बिसर गया जुग बीच । नाम जिनवरका ॥ नाम०॥ पच रह्या कुटुंबके काज । किया फंद घरका । तें दया धरम बिन खोया जनम सब नरका ॥ जनम०॥ तें पल्ले बांध्या पाप । कसाई सरखा ॥ अब लि या नही तें लान । बखत पर करका ॥ वखत० ॥ तेरीवीति बात सब जाय । जनम ज्युं खरका ॥ अब सुणो सीख सूतरकी । सुलटरेशानां ॥ सुल० ॥ तुम०॥३॥ तेरी चरण सेज पर पोट्या । आनंद दिल आया। आनं०॥ मेरी नगी चूख सब प्यास । सुधारस पाया । मेरे सिरपर तुम सिरदार । जिनेसर राया ॥ जिने ॥ में चावं चरनकी सेव । सफल कर काया। अब द्यो दोलत दरशनकी । मेरे एहि माया ॥ मेरे०॥ युं अरज करे जिनदाश अलप गुण गाया । अब बुरा कुगुरु उपदेश । सुणो मत जाया॥धरो०॥ तुम०॥७॥ ॥ ॥ ॥४॥ .... ॥ ॥ श्रीनोमिनाथ लावणी॥
॥ॐ॥दे गया दगा दिलदार। सुनो मेरी माई। सु० । लग रही नेम दरशनकी । सरस असनाई ( ए आंकणी)। अब अजब अलीजो नेम । मे रे शिर गजे ॥ मेरे० ॥ जादवकी देखी जान । जगत सब लाजै। एसो नेम नवल एकवींद। अनोखो गजे। अनो० । सुर नर सब गावे गीत। गगन में गाजे । अब दोम दोम सब उनीयां । देखन आई। दे। ल० दे०॥१॥ अब चढ्या नेम तोरनकुं आनंद दिल धर कर । आनं० । सज आये सुरंगी साज । कीलोला कर कर। में पायो परमानंद हरख हियो जर कर । हर ख० ॥ ले गयो पति नेमनाथ । मेरो चित्त हर कर ॥ सखि सुख संपत आं