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७८४ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह
॥ ॥ अथ श्रीजिनध्रममहिमास्तवन ॥ * ॥
* ॥आवो आवो नगरिया हमारी रे॥ इस चालमें ॥ आवो आवो सऊन मिल सारारे ॥ गुणगावो जिनंद सुखकारारे॥ आ०॥टेक ॥ कोई हाथे वंशी धारो॥ कोई हाथे बीणारे ॥ मृदंग वजावो गावो करी स्वरकीणा॥ आ० ॥ १ ॥ ठम २ पायनाचो घुग्घरु वंधावोरे॥ नर नारी सहु जोडे सुजश वधावो ॥आवो० ॥२॥दान दया शील धारो । तप जप सारोरे ॥ जावसुध धारकरो आतम निस्तारो ॥ प्रा० ॥३॥ पर पीडा दूर करी ॥ करो नपगारोरे। पर निंदा दूर गेमो। लेवोगुणसारो॥०॥४॥जीवकों वचायाचावो जिन ध्रम धारोरे ॥ समकित सुध धारी करोनवपारो ॥ आ. ॥५॥ज्ञान गुणीसें सोबत रखतां ॥ होवैगी वमाईरे॥ लक्ष्मी मोहन शिव सुख पावे । जय आनंद बधाई ॥आ० ॥६॥इति पदम् ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ अथ चौवीशजिन नमस्कार स्तवन ॥ ॥ ॥ * ॥ नेमगयो गिरनाररे॥ इस चालमें ॥प्रनुजी मिल्या मोहे आजरे। मेरा सफल थया सहुकाजरे॥प्र०॥ एतो तीन जुवन सिर ताजरे॥प्र मेंतो रूषन अजित संभव नमुं । अभिनंदन जिनराजरे । सुमति पदम प्रनु सेवतां धारु सुपार्श्व सुकाजरे ॥प्र० १॥ चंद्राप्रनु जिनवर नमुं । सुबिधि शीतल . महाराजरे । श्रेयांस जिनकों नितनमुं। वासु पुज्य मुखकाजरे ॥ प्र० ॥ ॥२॥ विमल, अनंत प्रनु, नमुं । धर्म शांति गुणराजरे । कुंथुनाथ, अरिनाथकों । मल्लिनाथ मुन काजरे ॥ प्र० ३॥ वीशमा मुनिसुव्रत नमुं । नमि नेमी पार्थ महाराजरे । चौवीशमा महाबीरजी । शाशनपति शिरता जरे॥ प्र०४॥ नवपद सहु गणधर नमुं। पूरो मन बंबित काजरे । शिव सुख श्रीवर पद मिले । मोहन जय गुणराजरे॥प्र०५ ॥ इतिश्री महो पाध्याय श्रीलक्ष्मीप्रधानजी मुक्ति कमलगणिःकृतस्तवन संग्रह संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ अथ श्री दादाजीकी अष्टप्रकारी पूजा लि० ॥ * ॥
॥ॐ॥ सकल गुणगरिष्टान् सत्तपोनि वरिष्टान् । शम दमय मनुष्टांश्चा रुचारित्र निष्टान् । निखिल जगति पीठे दर्शितात्म प्रनावान् । मुनिप कुश लसूरीन् स्थापयाम्यत्र पीठे ॥१॥ * ॥नक्षी श्री श्री जिन कुशल सूरि