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श्रीदादाजीकी अष्टप्रकारी पूजा. ७८५ गुरो अत्रावतरावतर स्वाहा ॥इति आह्वानं ॥ ॥ क्षी श्री श्री जिन कुशलसूरि गुरो अत्र तिष्ट २ ः वः स्वाहा॥8॥इति प्रतिष्ठापनं ॥२॥शी
श्री श्री जिनकुशल सूरिगुरो अत्र मम सन्निहितो नव वषट् ॥ ॥ इति सन्निधी कारणं ॥३॥ ॥
॥॥अथ अष्टप्रकारी पूजा॥॥ ॥ ॥ (दूहा) गंगाजल तिम नृवलवलि । तीर्थोदक भरपूर । कल शनरी गुरु चरणपर । ढालै तस ःखदूर ॥१॥ॐ ॥ ( ढाल ) देशी सूर ती महीनांनी ॥ ॥ गंगाजल अति निरमल अमलसु कमलें पूर। खोरो दधि वरदधि ज्यौं नमाल जल भरपूर । तेह नदकवलि तीर्थ नीर जरि कलश सनूर । गुरुचरणे जे ढालै टालै उकृतदूर ॥१॥ ॥ नक्षी श्री श्रीजिन कुशल सूरिगुरु चरणकमलेभ्यः जलं निर्वपामिते स्वाहा ॥ इति जलपूजा ॥
॥ ॥ चंदन पूजा॥ ॥ ॥ ॥ बावन्ना चंदन अगर । घस केसर घन सार । चरचे जे गुरु चरणनें । पांमें जै जैकार ॥१॥ (ढाल)॥ ॥ मलयागर तिम अगर चं. दन बलिकेसर सार । कस्तूरी अतिगंधै पूरी घस बनसार । कुशल सूरि गुरुचरणे चरचै चढते नाव । सकल रोग तन सोग हरै वलि जमता नाव ॥२॥ ॥ क्षी श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरण कमलेभ्यः चंदनं निर्वपामिते स्वाहा ॥३॥इति चंदन पूजा ॥४॥
| | पुष्प पूजा ॥ ॥ ॥केतकि चंपक फूलथी। पूजे जे गुरुपाय । तसु जशसूर नदै हुवै । अपजश तिमिर नसाय ॥१॥ (ढाल)॥ ॥ चंपक केतकि मख्वो दमन सेवंती फूल । जाई जुई मोगरो मालती तेम नडून । कमल गुलाब चंपेली बेली परमलपुर । गुरुचरणे जे ढोवै होवे जश ज्यूं सूर ॥२॥ क्षी श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरणकमलेभ्यः पुष्पं निर्बपामिते स्वाहा॥ इति पुष्पपूजा ॥ ॥
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॥ ॥ ॥ॐ॥ अदत पूजा ॥४॥ ॥॥ नऊल ज्यों शशि अंकविण । खंम्ति नहीं विशाल । अक्त गु