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रत्नसागर.
मीसर गिरनार ॥ ती० ॥ १ ॥ अष्टापद एक देहरो । गिरि सेहरोरे। जरतें जराव्या बिंब ॥ ती० ॥आबू चौमुख अतिनलो। त्रिभुवन तिलोरे । विम ल वसइ वस्तुपाल ॥ती० ॥२॥ समेतशिखर सोहामणो । रलीयामणोरे। सीधा तीर्थकर वीश ॥ती० ॥नयरी चंपा निरखीये । हीये हरखीयेंरे । सीधा श्री वासुपूज्य ॥ ती॥ ३ ॥ पूर्वदिशें पावापुरी । रुहें नरीरे । मुक्ति गया महाबीर ॥ ती० ॥ जेशलमेर जुहारीयं । पुःख वारीयेंरे । अरिहंत बिंब अ नेक॥ ती० ॥ ४ ॥वीकानेरज वंदीयें। चिरनंदीयेंरे । अरिहंत देहरा आ ठ॥ ती० ॥ सोरिसरो शंखेश्वरो । पंचासरोरे । फलोधी थंनणपाश ॥ ती० ॥ ५॥ अंतरीक अंजावरो । अमीमरोरे । जीरावलो जगनाथ ॥ ती० ॥ त्रैलोक्य दीपक देहरो। जात्रा करोरे । राणपुरे रिसहेस ॥ ती० ॥ ॥६॥श्रीनामोलाई जादवो। गोमी स्तवोरे ॥श्रीवरकाणो पाश ॥ ती० ॥ नंदीश्वरनां देहरा । बावन जलारे। रुचक कुंमले चार चार ॥ ती० ॥७॥ शाश्वती अशाश्वती। प्रतिमा उतारे। स्वर्ग मृत्यु पाताल ॥ती०॥ तीरथ जात्रा फल तिहां । होजो मुज इहारे। समयसुंदर कहे एम॥ ती० ॥ इति ॥ * ॥
॥॥अथ श्री राणकपुरजीतुं स्तवन ॥॥ ___॥ * ॥ श्रीराणपुरो रलीयामणुरे लाल । श्री आदीसर देव । मन मो
अ॒रे । नत्तंग तोरण देहरुरे ला०॥ निरखीजें नित्यमेव ॥ म० ॥ १ ॥ च नवीश मंमप चिहुं दिशेरे ला० ॥ चनमुख प्रतिमा चार ॥ म० ॥ त्रिनुव नदीपक देहरैरे ला० ॥ समोवम नहीं संसार ॥ म० ॥ श्री० ॥ २ ॥ देहरी चोराशी दीपतीरे ला० ॥ मांड्यो अष्टापद मेर ॥ म० ॥ नलें जुहारया जोयरांरे ला० ॥ सूतां की सवेर ॥ म० ॥ श्री० ॥ ॥ ३॥देश जाणीतुं देहरुंरे ला० ॥ मोटो देश मेवाम ॥ म० ॥ लख्ख नवाएं लगावि यारे ला०॥ धन धन्नो पोरवाम ॥ म० ॥ श्री० ॥ ४॥ख रतर वसई खांतशुंरे ला०॥ निरखंतां सुख थाय ॥ म० ॥ पांच प्राशाद बी जा वलीरे ला॥जोतां पातिक जाय ॥ म०॥ श्री०॥ ५॥ आज कृता रथ हूं थयोरे ला०॥ आज नयो आणंद ॥म० ॥ यात्रा करी जिनवर तणीरे ला० ॥ दूरे गयुं मुख दंद ॥ म०॥श्री० ॥ ६ ॥ संवत शोल