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सिधगिरी गिरनार प्रमुख पंचतीर्थ स्तवन. १८९ एणाय नमः॥२१॥०॥ ए सिघ गिरीना (२१) नाम सर्वने मुखें प्रगट कही ने (पी) पांच तीर्थना पांच स्तवन कहेवां ते लखीये गयें ॥१॥
॥ ॥ प्रथम श्री सिद्धगिरी स्तवन ॥ * ॥ ॥ॐ ॥ नीलमी रायण तरूतले । साहेलमीयां। पीलमा प्रनुजीना पाय गुण मंजरीयां । ऊजले ध्याने ध्याइयें ॥ सा० ॥ अहीज मुगति नपाय । गुण ॥१॥शीतमी गयायें वैसीयें ॥ सा० ॥ रातडो करी मनरंग॥गु ण ॥१॥ नाही धोई निर्मल थई ॥ सा० ॥ पहेरी वस्त्रादिक चंग ॥गुण ॥२॥ पूजीयें सोवन फूलमे ॥ सा०॥नेह धरीने श्रेह ॥ गु०॥ ते त्री जे नवे शिवलहे ॥ सा०॥थाये निर्मल देह ॥ गु० ॥ ३ ॥ प्रीत धरी प्र दक्षिणा॥ सा॥दी अहनें जे सार ॥ गुण ॥ अनंग प्रीति होने जेहने ॥सा०॥ नवनव तुम आधार ॥ गुण॥ ४ ॥ कुसुम पत्र फल मंजरे ॥सा०॥शाखा थमने मूल ॥ गुण ॥ देवतणा वासा अडे ॥सा०॥ तीरथने अनुकूल ॥ गुण ॥५॥ तीरथ ध्यान धरी मनें । सा० ॥ सेवो एहने नचाहि ॥ गुण ॥ ज्ञानविमल गुरु जाखियो । सा० शेठेजा महातम मांहि गुण इति श्री शेठेजा स्तवनं ॥ ॥ॐ॥ ॥
॥ ॥ अथ श्री गिरनार तीर्थस्तवन॥॥ ॥ ॥ देखी कामनी दोयके कामें व्यापीयो हो के का० ॥ए चाल ॥
॥ ॥ नेमनिरंजन देवके सेव सदा करूं हो लालके ॥ से० ॥ अहनिश ताहरूं ध्यानके दिल माहे धरूं हो लाल ॥ दिल०॥शंख लंउन गुणखाणके अंजन वान हो० के॥अं०॥राजिमतीना कंतके परण्या विणु अने हो॥ पर०॥१॥ तुंहीज जीवन प्राणके आतमराम हो० के ॥ आत॥माहरे परमा धारके ताहरू नाम हो० के॥ ता०॥ समुद्र विजयना नंदन नितुनित वंदता होके० नित०॥कीजीयें करुणा वंतके कर्म निकंदना हो के॥कर्म०॥ ॥२॥जीत्या मनमथ राज रही गढऊपरै हो के॥ रही। पहरी शील स नाह नदास ऐसी धरै हो ऊदा० ॥ सवि जिनवरमां स्वामि तुझे अ धिकू करयुहो० ॥ तुझे ॥ कुमरपणे धरी धीर महाव्रत उच्चस्या हो० के॥ महा०॥३॥आठ अवांतर नेहजे तेह कवेखीने होला० ॥ तेह० ॥ करु