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रत्नसागर.
कृष्णागरुको धूप घटत हे । परिमल महके अपाररे ॥ चालो० ॥२॥ लाल गुलाल अबीर नमावत । पाशजीके दरबाररे ॥ चा० ॥३॥जर पिचकारी गुलालकी गिरको । वामा देवी कुमाररे ॥ चालो० ॥४॥ ताल मृदंग वीण मफ बाजे । नेरी मुंगल रण काररे ॥चालो०॥५॥ सब सखीयन मिल नाटक करके । गावत मंगल साररे ॥ चालो॥६॥ रत्नसागर प्रनु भावना जावे । मुख बोले जयकाररे॥ चालो० ॥७॥ * ॥
॥ ॥ पुनः होरी ॥ * ॥ ॥ * ॥ नेमजीसें कहीयो मोरी । शामरेसें कहीयो मोरी । तोरण आए कोने नर माए । गेम चले अनिमानी ॥ अरे लाला ॥गेम चले० ॥ पशुवन के शिर दोष चढायो । तोमी प्रीत पुरानी॥ दयादिलमें नही आनी॥ (शामरेसें०) ॥१॥ चूक पमी सो मुहसें कहीयो । ऐसी ना करी ए शोधानी॥ अरे०॥ आठ नवोंकी प्रीत बंधाणी। नवमे चले क्यु जानी॥शाम तेरी सुरत पिगनी (शामरेसें० ) ॥२॥ या जोरी जुगमें पूर नेह लागी, राजुल गुलकी बानी ॥ अरि०॥ बीनति सुन अमर पद दीजे। रंग विजय सुखदानी॥वा गमन निदानी (शामरेसें)॥३॥
॥ॐ॥ पुनः होरी॥ॐ॥ ॥ * ॥ महाराज तोरे मंदिरमे बरसे रंग । हारे हो। श्री चिंतामणि पाश प्रनुजी (तोरे मंदिरमें० )॥टेक ॥ ज्ञान गुलाल अबीर अरगजा। सुमता नीर सुचंग (हारे हो०)॥१॥ अनुन्जव लहर फूली फूलवामी । दिन दिन चढते रंग (हारे हो०)॥२॥ नपशम वागा अंग अनोपम । शुक्ल ध्यानके संग (हारे हो.)॥३॥ अमरचंद चिंतामाणि चित्त धर। तुज° अविहम रंग (हारे हो०)॥४॥ इति ॥॥ ॥ ॥ॐ॥
॥ * ॥ पुनः होरी ॥॥ ॥ ॥ तोरी अंगीयां बनी है सुरंग । (हां रे हो) श्री चिंतामणिपाश ॥ प्रनुजी तोरी०॥ सुविवेकी श्रावक मिल आए । आणी नाव अग्नंग ॥ हारे हो श्री० ॥ ग्रह बंधीकी नांत नली है। बुंटीया नव नव रंग ॥ हारे हो श्री चिं०॥ १ ॥ जरकस जापो खूब बन्यो है । कोर केवमा संग ॥ हारे हो