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नाव होली खेलन बिचार स्तवन ४०३ श्री चिं०॥ मस्तक मुकुट काने दोय कुंमल । बाजूबंद सुचंग ॥ हारे हो श्री चिं०॥२॥ फूलनकी गलमाल सोनत है। सौरंग वास सुगंध ॥ हारे हो श्री चिं०॥ त्रिनुवन साहब तखत बिराजे । महिरवान मन रंग ॥ हारे हो श्रीचिं० ॥३॥ सुर नर याकी सेवा करत है। रात दिवश धर रंग ॥ हारे हो श्री चिं०॥ मुनिजर है साहेबकी सबपर। संघ है सकल सुरंग ॥ हारे हो श्री चिं०॥ भावना जावो जिन गुण गावो । अमर घणे रंग ॥ हारे हो श्री चिं० ४॥इति ॥
॥ ॥ ॥ (पुनःहोरी)॥ ॥ ॥ ॥ चिंतामणि चित्त ध्यावो रे। वजित फल पावो ॥ सकल नविक जन मिलकर आवो । राग फाग गुण गावोरे॥ वंचित० ॥१॥ अबीर गुलाल लाल संग लावो । नर नर मुठीया नमावोरे॥ वं०॥ कुंकुम केशरकुं गिरका वो। नाव शुक्ल नल जावोरे॥० ॥२॥ अंगी चंगी पुहप बनावो दीपक ज्योति दीपावोरे॥०॥ दरस सरस करके सुख पावो । पुण्य नंमार जरावारे ॥०॥३॥ वाजिव वाजा विविध वजावो । नृत्य संगीत नचावो रे॥०॥ अमर सिंधुर आनंद बधावो । जिनजीसें लय लावोरे॥ ४॥
पुनः होरी॥॥ 30 ॥ ॥ मत मारो पिचकारीरे। मेंतो सगरी नीज गई ॥ म०॥ ताल मृदंग बजत मन मांहि । गावत आगम राग ॥ लाल मेंतो सगरी नीज गई ॥ मत०॥१॥ज्ञान गुलाल सदा रंग लागो। खेलत मुमति सोहाग॥पी या मेंतो सगरी नीज गई ॥२॥समकित केशर चीर रंगाळं । पहिरं मन बैराग॥ लाल मेंतो० ॥३॥ लख चौराशी रामत गेहूं। चारों गति सो हाग ॥ पिया मेंतो० ॥ ४॥ ऐसा खेल खेले सब प्यारी। शिव सुंदरी व रमांग। लाल मेंतो० ॥ ५ ॥ ज्ञानसागर प्रनु बिविध प्रकारें। इण विध खेले फाग॥ लाल मेंतो०॥६॥ ॥ इति ॥ .. .... ॥ * ॥
पुनः होरी॥॥ - ॥ ॥ हारे तुंतो जिन मज विलंब न कर हो । होरीके खेलश्या । हां० ॥ (आंकणी) ॥ समता लहेर संयममां गीली । ममता लहेर परिहर