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रत्नसागर. हो॥ हो० ॥१॥ विनय संचारीमें गरि पिचकारी । होरेतुंतो, शिवरमणीकुं वरहो। हो ॥ ज्ञान गुलाल जरी तिहां जोरी। हारे तुंतो, खेल वसंत घर घर हो॥ हो ॥२॥शील सुगंध आनूषण अंगे । हारे तुंतो. आतम अं नुन्नव वर हो ॥ हो० ॥ज्ञान विज्ञान फूली फूल वारी। हारे तुंतो, गुंजत मनमधुकर हो॥ हो० ॥३॥वामानंदन पाश जिनेसर । हारे तुंतो, जगना यक जग गुरहो ॥ हो॥ श्रीजिनलान कहे प्रजु संगे । हारे तुतो, सम तारस अनुसर हो ॥ हो ॥४॥ इति ॥ ॥
॥ ॥ पुनः होरी ॥ * ॥ ॥ नेम मिलेतो बातां कीजीये ॥ होप्यारे । नेम मि० ॥ टेक।। मेंहूं तुमारी खिजमतगारी । प्रेमका प्याला पीजीए । हो॥ने ॥१॥ हम है केतकी तुम हो नमरा। फिर फिर वासना लीजीये।। हो० ॥ ने॥२॥ मेंहुं धरती तुम हो मेहुला। कबहुं तो मिलना कीजीये ॥ हो॥ने०॥३॥ नेम राजुल मिल मुक्ति सिधाए । रूपचंद पद दीजीये ॥हो॥ने०॥४॥
॥॥ पुनः होरी॥ ॥ * ॥ आतमतत्व विचारो झानसें । करम कटे ज्युं शुक्ल ध्यानसें ॥ आ (आंकणी)॥पुद्गल जीव सरूप पिगन्यो। ममता मिट गइ सारी जान सें॥कर्म कटे ज्युं शुक्ल ध्यानसें ॥०॥१॥ क्रोधादिक अरी अंधकार सम; नाश यो सब ज्ञान जानसें ॥ ० ॥ २ ॥ परमातम पद पावत सोई। विनय जजत पद अचल थानसें ॥०॥३॥ इति ॥
॥॥ पुनः हारी॥8॥ ॥ॐ॥ लाल तेरे नयनोंकी गति न्यारी ॥ एतो नपशम रसकी कयारी ॥ लाल०॥ ( आंकणी ) ॥कामक्रोधादिक दोष रहित हे। नयन नये अं विकारी ॥ निद्रा सुपनदशा नहिंयामें। दर्शनावरण निवारी लाल ॥१॥
ओरनयनमें काम क्रोध हे । बहुत जरी हे खुमारी ॥ परधन देख हरनकी इडा। या हे हुशियारी॥लाल०॥ २ ॥ऐसा लबन हे नयनोमें । क्यु पामे जव पारी ॥ ओही बिचार करो दिल अपनें। होत कर्मसें भारी॥