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नाव होली खेलनविचार स्तवन.
४०५ लाल० ॥ ३ ॥धर्म बिना कोई सरनां नहिं हे । एसो निश्चे धारी ॥ विनय कहे प्रनु भजन करो नित । ओही तारन हारी॥ लाल०॥४॥इति॥
॥ॐ॥ पुनः होरी ॥॥ ॥ ॥दर्शन बिन जीव संसार जम्यो ॥ दर्शन० ॥ चोराशी लख योनी नटकत । लहि मानव जव युहि गम्यो॥०॥ १ ॥ पुन्यनदय श्रा वक कुल पायो। घटमें ज्ञान उद्योग नयो॥ द० ॥२॥ माया ममता में निशदिन तुं । विषय विकारशुं नहिं विरम्यो॥द०॥३॥सार विवेक तुंधार रे चेतन । पटकत भ्रममें क्युं नटक्यो ॥ दु० ॥ ४ ॥ कहत हमाकल्याण निरंतर । जज नगवंत तेरो पापशम्यो॥द०॥५॥2॥
॥ ॥ पुनः होरी || 3 ॥ ॥ मत गेमो ह्मांने युहीरे। कोई चूक बतावो॥ मत०॥अबीर गुलाल नाव सब रमतां । हमशुं कदेय न खेलोरे॥ को० ॥१॥ रथ फेरी प्रनुजी घर आये । चढिया ने गिरनारी रे॥को० ॥ २ ॥ बहुत हगशुं व्याह रचायो जीव देख दया आणी रे॥को० ॥ ३ ॥राजुल कली अरज करत है। एक वार फिर जोवोरे॥को० ॥ ४ ॥ नेमि राजुल मिल मुक्ति सिधाए । पहेली राजुल नारीरे ॥को०॥५॥ ॥ इति ॥ ॥१॥
॥ ॥ पुनः होरी॥ॐ॥ ॥ ॥ अटक्यो चित्त हमारो री । जिन चरण कमलमें ॥ अट० ॥ शीत लनाथ जिनेसर साहिब । जिनवर प्राण आधारो री॥ जि० ॥ १॥ माता नंदादेवीको नंदन, दृढरथ नृपको प्यारो री॥ जि०॥ २ ॥ श्रीवन लग्न जनम दिलपुर । कुल इक्ष्वाग नदारो री ॥ जि०॥ ३ ॥ नेवु धनुष शरी र सुशोनित । कनक वरण अनुकारोरी॥ जि० ॥ ४ ॥ एक लत पूरबा यु कहिये । नाम लीआं निस्तारो री ॥ जि० ॥ ५ ॥ दीनदयाल ज गत प्रतिपालक । अब मोहे पार नतारोरी ॥ जि० ॥ ६ ॥ हरखचंद का साहेब सच्चे । हुँतो दास तुमारोरी॥ जि०॥७॥॥
॥ ॥ मंगल स्तवन ॥ ॥ ॥ ॥ मंगल राजै गिरनार । नेम पद मंगल है ( देवा० ) मंगल रा