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रत्नसागर.
जिमती पद मंगल | मंगल रह नेमि राज ( ने० ) मंगल गणपति मंगल पाठक । सब तपसी विचसार ( ने० ) मंगल धन धन्ना मुनि नायक । मैं गल सब अनगार ( ने० ) जय जय खेम कुशल गुरु जंपै । श्रानन्द घन अवतार ( ने० ) । इति पदम् ॥ * ॥ 1111
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॥ * ॥ इम माश द्वादश मध्य जे सहु पर्व्व सेवन कारनें । सहु बा लजन नृपगार कारन शुद्ध भाषा सारनें ॥ संवत् रसानजनंदबसुधा नाद्र शित एकादशी । गुरु गढ़ खरतर कलिकता पुर मोहन भाषा उपदिशी ॥ १ ॥ * ॥ इति द्वादशमाश पब्र्बाधिकारः ॥ १२ ॥ सं १८३६ ॥
॥ * ॥ अथ द्वादश माश मध्ये प्रसिद्ध पर्वाधिकार कथनानंतर । सांप्र ति मखिलजिन पंचकल्याणक स्वरूप मुच्यते ॥ *॥
॥ ॐ ॥ जिस माशमें जितने दिन भगवंतके कल्याणकके है । सो स . नव्यजीवों के सेवन करने योग्य है । परंतुकोण तिथकों क्या कल्याण कहै । सो जाएया बिना सेवन कर सकते नही । ( और विशेष में ) पंच कल्याणक तपस्या करनेवाले जव्यजीवोंके अवस्य पंच कल्याणक टीप गुणनें बिना काम चलता नहीं । इसीसें गुणनो करनें माफक विधि प्रया कसें पंच कल्याणक टीप लिखते हैं ||
॥ * ॥ अथ पंच कल्याणक टीप लि० ॥ ॥ ( कार्त्तिक शुक्लपक्षे ) ॥ २ ॥ ३ ॥ श्रीसुविधिनाथजी सर्वज्ञाय ० ॥ १२ ॥ श्रीनाथजी सर्वज्ञाय० ॥ (मार्गशीर्ष शुक्लप के )॥९॥ १० ॥ श्रीमरनाथजी अर्हते नमः ॥ १० ॥ श्रीमरनाथजी पारंगताय ॥ ११ ॥ श्रीमरनाथजी नाथाय० ॥ ११ ॥ श्रीमल्लिनाथजी अर्हते ० ॥ ११ ॥ श्रीमल्लिनाथजी नाथाय० ॥
( कार्त्तिक कृष्णपक्षे ) ॥ ५ ॥
५ ॥ श्रीसंभवनाथजी सर्वज्ञायः ॥ १२ ॥ श्रीपद्मप्रभुजी ते नमः ॥ १२ ॥ श्रीनेमिनाथजी परमेष्टि ० ॥ १३ ॥ श्रीपद्मनुजी नाथाय ॥ ३० ॥ श्रीवर्धमानजी पारंगताय० ॥ (मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष )॥४ ॥ ५ ॥ श्री सुविधिनाथजी प्रहते• ॥ ६ ॥ श्रीसुविधिनाथजी नाथाय ॥