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८४ सातना (तथा) २४ जिनदेहमान स्तवन.
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लेखो करे मंत्रणो । विहचण अपणो करि धन धरणो ॥ ६ ॥ बेसै पग ऊपर पग चढियां । थापै गंणा बने ढूंढणीयां । सूकवै कप्पर पप्पन व मियां । नासीय बिपै नृपभय पमियां ॥ ७ ॥ शोके रोवे विकथाज कहै । इहां संख्या बेतालीस लहै । हथियार घरेनें पशु बांधे । तापे नांणों प रखे ॥ ८ ॥ जांजी निसही जिन गृह पेसै । धरे उत्रने मगपमें बेसै । पहिरे वस्त्र नें नही । चामर वीजैं मनठाम नही ॥ ९ ॥ तनु तेल सचित्त फल फूल जीये। भूषण तजि आप कुरूप थीये | दरसाथी सिर अंजलि नधरे । इग सारै उत्तरा सँग न करे ॥ १० ॥ बोगो सिर पेच मोम जो मैं । दडिये रमनें वैसे होने । सयणांसुं जुहार करे मुजरो । करे म चेष्टा कहै वचन बुरो ॥ ११ ॥ धरै धरणो जगमे नवंठी । सिर गुंथे बांधे पालं ठी । पसारे पग पहरे चाखमीयां । पग ऊटक दिरावे दुर वमीयां ॥ १२ ॥ कर दम है मैथुन मं । जूमा वलि ओंठ तिहां बं । नवाडे गुझ करे । वयदां | काढे व्यापार तणी कयदां ॥ १३ ॥ जिनहर परनाजनो नीरधरे ।
घोले पीवाराम भरे। दूषण जिन जवनमें एदाख्या । देव वंदन नाष्यमें जे जाया ॥ १४ ॥ सुज्ञानी श्रावक सगतितां । आसातन टाले वार सतां । परमाद वसे कोई थायै । आलोयां पाप सहूजायै ॥ १५ ॥ तंबोल नें जोजन पान जूा । मल मूत्र सयन स्त्री जोग हुआ । भूषण पनही ए जघन्य दसे । वरज्या जिन मंदिर मांहिवसे ॥ १६ ॥ द्रव्यतनें जावत दोय पूजा । एहनाहीज नेदकह्या दूजा । सेवा प्रजुनी मन सुद्ध करै । ि त सुख लीला तेह वरै ॥ १७ ॥ ( कलश ) ॥ * ॥ इम जव्यप्राणी नाव आणी विवेकी शुभ वातना । जिन बिंब अरचे परी वरजै चोरासी आसातना । ते गोत्र तीर्थंकर उपार्जे नमें जेहनें केवली । नव झाय श्री धमसीह वंदे जैन सासन ते वली ॥ १८ ॥ इति श्रीचौरासी आसातना स्तवनं ॥ १३ ॥ ॥
॥ * ॥ अथ २४ जिनदेहमान स्तवन लिख्यते ॥ ॥
॥ * ॥ प्रणमुं षत्र जिनेसर पाय । धनुष पांचसै उंचीकाय । बीजो अजित जिन मुऊ मन बसै । मान धनुष साढाच्यारसे ॥ १ ॥ तीजो सं जव सुख दातार । ऊँची काय धनुष सोच्यार । अभिनंदन जिनसुं मनली